Friday, June 17, 2011

इस बार दर्शक भी फ्राई होते हैं


फिल्म समीक्षा: भेजा फ्राई:
भेजा फ्राई पार्ट वन और टू दोनों ही फिल्मों की धुरी विनय पाठक हैं। पर्दे पर अपने से उल्टे मिजाज वाले कलाकार को अपनी बातों से बोल-बोल कर पका देना ही फिल्म का विषय है, आउटलाइन है, पंचिग लाइन और क्लाइमेक्स है । दोनों ही फिल्मों में बोर करने वाले कलाकार विनय पाठक उर्फ भारत भूषण हैं। बोर होने वाले इस बार बदल गए हैं। पार्ट टू में केके मेनन ने रजत कपूर को रिप्लेस किया है। भेजा फ्राई:२ भेजा फ्राई वन की सफलता से उत्साहित होकर बनाई गई फिल्म है। छोटे बजट की इस फिल्म ने अच्छा व्यवसाय किया था। फिल्म थोड़ा भव्य लगे इसलिए अबकी बार इसे बंद कमरे से निकाल लिया गया है। शायद इसी भव्यता ने कुछ गलतियां करा दी हैं। पहली गलती पटकथा स्तर पर है। शुद्ध हिंदी बोलने वाले को हंसी का पात्र दिखाना, निर्जन टापू में बनी एक झोपड़ी में बिजली की सुविधा होना, इनकम टैक्स अधिकारी से बचने के बजाय उसे जान से मार देने की योजना बनाना, भारत भूषण का अपने दोस्त से कॉमिक्स के पात्रों जैसी लड़ाई करने जैसे दृश्यों के अलावा और भी कई दृश्य दर्शकों को बुरी तरह से इरीटेट करते हैं। दूसरी गलती संवाद स्तर पर है। भारत भूषण का बाचाल होना इस बार दर्शकों का भी भेजा फ्राई करता है। उनके संवाद लाउड तो लगे ही हैं उनमें कहीं-कहीं ओवर ऐक्टिंग भी दिखती है। संवाद हास्य पैदा नहीं करते। हंसने के एक दृश्य से दूरी दूसरे दृश्य से बहुत दूर है। फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत ही साधारण है। फिल्म का सबसे बेहतर पक्ष अभिनय है। विनय पाठक, केके मेनन के अलावा अमोल गुप्ते ने हमेशा की तरह अच्छा अभिनय किया है। मिनिषा अच्छी लगती हैं उन्हें थोड़ी अच्छी भूमिकाएं मिलनी चाहिए।

Wednesday, June 15, 2011

यंगस्तान के खोखलेपन की कहानी:



फिल्म समीक्षा: शैतान

समांतर सिनेमा के एक ही मंच पर खड़े होने के बावजूद अनुराग कश्यप एंड कंपनी श्याम बेनेगल एंड कंपनी से उतनी ही दूर दिखती है जितनी कि वह चोपड़ा एंड घई से कंपनी से दूर होने का दावा करती है। शिल्प और विषय चयन के मामले अनुराग शायद विशाल भारद्वाज, सुधीर मिश्र या किरण राव के अधिक करीब जान पड़ते हैं। अनुराग की फिल्में शहरी दर्शकों में भी एक इलीट वर्ग की तलाश लगातार कर रहीं हैं। यह वर्ग आम जीवन में शेष वर्ग से अलग होने का दावा करता है। यह अलगाव बौद्धिक स्तर का है। चूंकि अनुराग इस वर्ग की समझ पर विश्वास करते हैं इसलिए उनकी कुछ फिल्में जैसे ब्लैक फ्राइडे और नो स्मोकिंग थोड़ी दुरूह भी हो गईं हैं। शैतान फिल्म से अनुराग का जुड़ाव निर्माता के रूप में है। फिल्म के निर्देशक बीज्वाय नांबियार हैं। उनकी नई-नवेली पत्नी काल्की ने फिल्म में प्रमुख भूमिका निभाई है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में शुरू के २० मिनट सिर्फ पात्रों की जीवन शैली दिखायी गई है। दृश्यों का कहीं कोई संयोजन या क्रम नहीं। एक सडक़ दुर्घटना के बाद शैतान एक फिल्म जैसी लगनी शुरू होती है। दुर्घटना के दोषी फिल्म के मुख्य पांच पात्र हैं। वह जेल जाना नहीं चाहते। पुलिस भी उन्हें जेल भेजना नहीं चाहती। इस उपकार के बदले वह उनसे २५ लाख रूपए चाहती है। छोटे-छोटे फॉर्मूलों और चालाकियों से अपनी जिंदगी मेंं बिलासता जुटाने वाले यह युवा पुलिस को यह रकम देने के लिए भी एक प्लान तैयार करते हैं। पूरी फिल्म इस अनमेच्योर प्लान के फेल होने और फेल होने की वजहों की कहानी कहती है। कहानी के आधार पर फिल्म में कुछ नयापन नहीं है। पुलिस ब्लैकमेलिंग, अपहरण और हत्याओं से बुनी पटकथा दर्शक कोई पहली बार नहीं देख रहे थे। फर्क बस उसको दर्शाने में रहा है। अनुराग ने घटनाओं से अधिक घटनाओं की वजहों पर फोकस किया है। फिल्म बिना वजह की लगातार पार्टियोंं में व्यस्त, कोकीन, शराब, सिगरेट के माहौल में जी रही युवा पीढ़ी की कमजोरी का ताना-बाना पेश करती है। फिल्म के यह पात्र छोटे से दबाव में स्थितियों और रिश्तों से पलायन करते दिखे हैं। यंगस्तिान के भीतर का खालीपन की समीक्षा शायद पहली बार हुई है। कलाकारों ने पात्रों के मुताबिक संतुलित अभिनय किया है।