Friday, October 14, 2011

यह कूपन तो खाली निकल गया





फिल्म समीक्षा: माई फ्रेंड पिंटो

बचपन में हम सभी ने वह सस्ती चाकलेट और कैंडी खाई हैं जिनके चमकीले रैपर में कोई न कोई एक जादुई अंक छिपा होता था। इस अंक को स्क्रैच किया जाता था। बाकी का किस्सा भी हम जानते हैं। इस अंकों को हमने बाद मेेंं कूपन के तौर पर जाना। इन टॉफियों की क्वॉलिटी कमतर होती है यह खाने वाला पहले से जानता है। लोभ उन जादुई अंकों का होता है जिनके खुलने पर इरेजर, शॉर्पनर या नोटबुक जैसी चीजें प्राय: मिल जाती थी। माई फ्रेंड पिंटो एक ऐसी ही फिल्म है। फिल्म देखने गए किसी भी दर्शक को फिल्म से बहुत उम्मींदे नहीं थी। अन्य फिल्मों में साइड रोल करने वाले इस फिल्म के लगभग नायक थे। निर्देशक बिल्कुल अपरिचित सा। शेष स्टारकॉस्ट बस थोड़ी बहुत जानी-पहचानी । यहां दर्शकों को इंतजार बस कूपन खुलने का था। इस फिल्म के साथ रिलीज हुई और चार फिल्में भी कूपन वाली ही फिल्में हैं। माई फ्रेंड पिंटों के कूपन खुलने पर दर्शकों को कुछ नहीं मिला। यह फिल्म दर्शकों को कही से भी नहीं चौंकाती। न कहानी स्तर पर, न प्रजेंटेशन स्तर पर और न ही अभिनय स्तर पर। प्रतीक बब्बर पहली बार इतनी बड़ी भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने नायक वाली इस भूमिका को वैसा ही निभाया जैसा कि वह छोटी भूमिकाएं निभाते आ रहे थे। क्रिकेट से थोड़ा बहुत भी परिचित लोग जानते हैं कि वीवीएस लक्षमण चाह कर भी ७० से ७५ गेंदोंं में शतक नहीं बना सकते। कुछ वैसा ही हाल प्रतीक का रहा। उनकी अपनी सीमाएं हैं। फिल्म में समीर बने अर्जुन माथुर, सुहानी बनीं श्रुति सेठ और रेशमा बनीं दिव्या दत्ता का अभिनय अच्छा लगा है। फिल्म के गाने जरूर आपसे एक संवाद करने का प्रयास करते हैं।

Thursday, October 6, 2011

अफसोस कि रासकल्स जैसी फिल्में आगे भी बनती रहेंगी


फिल्म समीक्षा: रासकल्स

आप किसी फिल्म के घटियापन के बारे में जितना सोच सकते हैं रासकल्स उससे दो नहीं सात-आठ कदम बढक़र साबित हुई। रासकल्स का निर्देशन डेविड धवन ने किया है। वह १९८९ यानी पिछले २२ सालों से फिल्म का निर्देशन करते आ रहे हैं। फिल्म में संजय दत्त प्रोड्यूसर होने के साथ एक्टर भी हैं वह १९८१ यानि कि तीस बरस से फिल्मों में एक्टिंग करते आ रहे हैं। फिल्म में अजय देवगन भी हैं वह १९९१ यानि की २० साल ऐक्टिंग करते आ रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री के इन तीनों महापुरुषों ने मिलकर यह फिल्म बनाई है। फिल्म के प्रोमो देखकर अंदाजा था कि फिल्म कैसी होगी पर अंदाज कभी कभी इतने बुरी तरीके से सही साबित हो सकते हैं इसका अंदाजा नहीं था। महेश मांजेकर और सतीश कौशिक ने आजकल सिर्फ ऐक्टिंग करना शुरू कर दिया है। फिल्में शायद अब इनसे बनती नहीं हैं। कोई उनसे बताए कि वह एक्टर और भी घटिया हैं। महेश मांजेरकर कितने बढिय़ा एक्टर हैं इसे आप दबंग में देख लीजिए और सतीश कौशिक को इस फिल्म में। कंगना रणावत को बख्श देना बेहतर हैं। उन्होंने दर्शकों जरूरत से ज्यादा दे दिया है। ऐक्टिंग के लिए इंडस्ट्री में दूसरी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियां मौजूद हैं यह बात वह जानती हैं।
दर्शकों का एक-एक पल तड़पाने वाली इस फिल्म का एक भी दृश्य ऐसा नहीं है कि उस पर मुस्कुराया जा सके। हालांकि ऑडी भरी हुई थी और कुछ दर्शक हंस भी रहे थे। इन्हीं दर्शकों के लिए रासकल्स जैसी फिल्में आगे भी बनती रहेंगी। बहुत सारे संजय दत्त ऐसी फिल्में प्रोड्यूस करेंगे और कई डेविड धवन उनको निर्देशित करेंगे। और पता नहीं किन वजहों से अजय देवगन जैसे कलाकार उसमें काम करते भी दिखेंगे।