Tuesday, November 27, 2012

खामोश! यश चोपड़ा हमें प्यार करना सिखा रहे हैं, चुपचाप सी‌खिए, तभी फिल्म 100 करोड़ क्लब में शामिल होगी

यश चोपड़ा की यह महान फिल्म उन दर्शकों के लिए है जिन्होंने यह फिल्म देखने के पहले सिर्फ फिल्मों के बारे में सुन रखा था उन्हें देखा नहीं था। उन्हें यह फिल्म बहुत ही खूबसूरत लगेगी। और जैसा कि बताया जाता है कि इस मुल्क को मोहब्बत करना यश चोपड़ा ने ही सिखाया है दर्शक इस फिल्म से मोहब्बत करने के कुछ ट्रिक सीख भी सकते हैं। पर फिर से यह प्रतिबंध लगाया जाता है कि दर्शक की यह पहली हिंदी फिल्म ही हो। यदि इसके पहले उसने कोई भी हिंदी फिल्म देख रखी है तो उसे यह फिल्म अपने जमाने से 20 से 50 साल पुरानी लग सकती है। उसे फिल्म के हर कलाकार का सामान्य ज्ञान कम लग सकता है। नायिका एक मोटी बुद्घि की लड़की लग सकती है और फिल्म के नाटकीय मोड़ जिसे लोग यशराज सिनेमा ट्वीस्ट कहते हैं बहुत ही भद्दे और बचकाने लग सकते हैँ। फिल्म के नायक शाहरुख को जब-जब प्यार होता है उन्हें एक गाड़ी टक्‍कर मार देती है जबकि वह बहुत सावधानी से रुल ऑफ द रोड को फालो करते हुए सड़क पार कर रहे होते हैं। टक्कर के पहले प्यार बरसाने वाली नायिका इस‌लिए शाहरुख से नहीं मिलती है क्योंकि कि उसने क्राइस्ट से शाहरुख का जीवन बचाने के बदले उससे कभी न मिलने की कसमें खाई होती हैं। आगे फिल्म और भी दिलचस्प है। शाहरुख खान नफरत करने की मौन कसमें खाते हुए भारतीय सेना में शामिल हो जाते हैं। उन्होंने दाढ़ी रख ली होती है और वह साथियों से बहुत काम बात करते हैं। इन सबके बीच वह बस डिफ्यूज करने का काम करते रहते हैं। शाहरुख यहां दीवार फिल्म के अमिताभ बच्चन की तर्ज पर भगवान से मोर्चा भी खोले हुए होते हैं। कि वह उन्हें मारकर दिखाए। इस बीच एक जर्नलिस्ट शाहरुख को कवर करने के लिए आती है। शाहरुख उससे दिन में रुखा व्यवहार करते हैं और रात में अकेले बैठकर फिल्मी गाने गाते हैं। ऐसी हालत में लड़की बिना प्यार किए रह नहीं पाती है। देश को प्रेम करना सिखाने वाला यश चोपड़ा ऐसा होने देते हैं। इसे उनका मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं। इस दूसरी लड़की (जिसे अभी अभी उन्हें प्यार हुआ होता है) के बुलाने पर वह लंदन जाते हैं। कुछ होने वाला होता ही है कि दुनिया को प्रेम करने के तरीके सिखाने वाले यश चोपड़ा शाहरुख को फिर से एक दुर्घटना का शिकार बनवा देते हैं। यानी पिछली दुर्घटना से शाहरुख ने कुछ नहीं सीखा होता है।
अब मजा देखिए। शाहरुख की याददास्त उस समय के दौर में चली जाती है जब वह पहली वाली लड़की से प्रेम फरमाने के समय चोट खा गए थे। देखिए कितना भयंकर किस्म का ट्वीस्ट। दर्शक तो बिल्कुल दांतों तले उँगलियां दबा लेगा। अब फिल्म की दोनों नायिकाएं एक चुलबुली और दूसरी ऐसी जैसे किसी की मयंत में आई हो मिलकर शाहरुख का जीवन सफल कर रही होती हैं। एक और महान घटना के साथ शाहरुख की याददाश्त वापस आ जाती है। वह दोनों लड़कियों को छोड़कर फिर से अपने फुल टाइम जॉब (बस डिफ़यूज करने वाला) में लग जाते हैं।अब फिल्म का क्लाइमेक्स आता है। जब वह बहुत महत्वपूर्ण बम डिफ्यूज कर रहे होते हैं उसी समय पहली वाली नायिका(वही जिसने क्राइस्ट को कुछ वजन दिया था) अपना वचन तोड़कर शाहरुख के साथ रहने आ जाती है। फिल्म की हैपी इंडिंग हो जाती है। कसम खाने वाली नायिका कैटरीना कैफ हैं और शाहरुख पर डाक्यूमेंट्री बनाने वाली अनुष्का शर्मा। इस फिल्म को देखने के बाद सबकुछ समझ में आता है पर यह समझ में नहीं आता कि 20 साल से अधिक फिल्मी दुनिया में रहने वाले शाहरुख खान की हिम्मत यश चोपड़ा से यह पूछने की नहीं हुई कि हम कर क्या रहे हैं। फिल्म का हर पात्र इतना बचकाना, उसके संवाद इतने हल्के और कहानी के ट्वीस्ट इतने जाने पहचाने कि लगता है कि यशराज कि किसी पुरानी फिल्म की फोटोकॉपी देख रहे हों। याददाश्त खो जाने का प्लाट इतना बचकाना और हल्का है कि हमें यश की कल्पना शक्ति पर संशय प्रकट करने का मन होता है। फिल्म में कैटरीना कैफ की भूमिका निहायत बचकानी है। वह जब-जब फिल्म में आती हैं फिल्म बैठती से लगी है। इस दम तोड़ती फिल्म की एकमात्र उम्मीद है अनुष्का शर्मा हैं। फिल्‍म में गुलजार और रहमान जैसे हस्तियां होने के बाद भी फिल्‍म का संगीत औसत है। यदि 2012 में दर्शकों को ऐसी ही कम बुद्घि वाली फिल्में दिखानी हैँ तो बेहतर है कि नई फिल्म बनाने के बजाय पुरानी फिल्मों को ही रीशूट करके रिलीज कर दें।