Saturday, December 22, 2012

दर्शक कब तक अपने आईक्यू का मजाक दबंग जैसी फिल्मों से उड़वाते रहेंगे

पिछले पखवाड़े कानपुर से दिल्ली की यात्रा में साहित्यकार सेरा यात्री मिल गए। होते-होते बातें फिल्मों तक पहुंच गईं। यात्री साहब ने पिछले कई सालों से हिंदी फिल्मों तो नहीं देखी थीं लेकिन उनकी एक बात रह-रह कर दबंग 2 देखते समय लगातार मेरे जेहन में घूमती रही। सेरा यात्री साहब का कहना था कि भारत के जो भी इंजीनियर, मैजनमेंट, मेडिकल, सीए या दूसरे जो भी लुभावने क्षेत्र हैं यह युवाओं की कार्य करने की क्षमता तो बढ़ा रहे हैं पर उसके अलावा उनकी सोचने और समझने की शक्ति को खत्म कर रहे हैं। खासकर सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों पर। जब वह वीकेंड में फिल्म देखने जाते हैं तो फिल्म की बुनावट या उसके स्तर पर कोई दिमाग नहीं लगाना चाहते। उन्हें बस ऐसी चीज दिख जाए जिसे वह स्वयं नहीं भोगते तो वह उन्हें बेहतर और मनोरंजक लगती है। भले ही चाहे वह कितनी हल्की क्यों न हो। दबंग 2 के एक सीन में सलमान खान, अपने भाई अरबाज से एक पहेली पूछते हैं। अरबाज उसका जवाब नहीं दे पाते। यह सीन लगभग एक मिनट का है। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि दो सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने जा रही और 2012 में बनी इस फिल्म में इतने घटिया स्तर के सीन हो सकते हैं। इससे ज्यादा आश्चर्य इस बात का हुआ कि इस सीन पर तमाम लोग हंस-हंसकर कर सीट में दोहरे हुए जा रहे थे। उन्हें यह सीन बड़ा दिलचस्प, मौलिक और हंसाने वाला लगा था। यह 2012 का सिनेमा है और यह 2012 के दर्शक हैं। मल्टीप्लेक्स का यह सीन किसी कस्बे का नहीं बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली का है। सलमान खान अपनी पिछली कई फिल्मों से इस बात का एहसास करा रहे हैं कि भारत के दर्शक का आईक्यू स्तर बहुत ही कम है। उनके पास इस बात के सुबूत भी हैं। बॉडीगार्ड फिल्म का नायक लवली सिंह यह भी अंदाज नहीं लगा पाता कि उसको उसी घर से फोन किया जा रहा है जहां वह रह रहा है। एक लड़की कहती है कि वह उससे प्यार करती है और लवली सिंह मान जाता है। मजे की बात यह है कि दर्शक उस चरित्र के साथ जुड़ते हैं। बार-बार हर फिल्म में। इस बात की गवाही देने के लिए यह आंकड़े काफी हैं कि यह फिल्में 100 करोड़ से ऊपर का कारोबार कर रही है। अभिनेता इरफान खान कहते हैं कि फिल्म कैसी बनेगी यह दर्शक तय करते हैं। स्वाभाविक कि दर्शकों का शिष्टमंडल ‌फिल्मकारों से शिष्टाचार भेंट करके इस बात का ज्ञापन तो देगा नहीं कि कैसी फिल्में बनाई जाएं। फिल्मों यह देखकर बनेंगी कि कैसी फिल्में दर्शक पसंद कर रहे हैं। और दर्शक दबंग 2 के जोक और उसके कम कॉमन सेंस वाले नायकों को नायक मान रहे हैं। मल्टीप्लेक्स में एक ही समय दो फिल्में चल रही हैं। तलाश और दबंग 2। इन दोनों फिल्मों में कॉमन बात यह है कि इन दोनों के ही नायक पुलिस वाले हैं। अब दोनों फिल्मों के ट्रीटमेंट के अंतर को देख लीजिए। आमिर खान ने यह इस फिल्म के लिए दो साल का समय लिया। जहां-तहां से ट्रेनिंग ली। रोल के मुताबिक घनी मूंछे रखी। पुलिस अधिकारियों का उठना बैठना, बात करना और कमजोरियां सीखी। उसी की बगल की ऑडी में चल रही दबंग 2 का पुलिसवाला नकली मूंछे लगाता है। फिल्म में एसपी का किरदार निभाने वाले शख्स की ऊंचाई पांच फिट से भी कम है। थाने में चुटकुले चला करते हैं। थाना दिवस पर कहा जाता है कि पांडेय जी अब हम सब का मनोरंजन करेंगे। दोनों के परिणाम देखिए। दबंग 2, तलाश से बड़ी फिल्म साबित होगी। समझ मे नहीं आता कि दोष फिल्मकारों का है कि दर्शकों का। पहली नजर में तो दर्शकों का ही लगता है। जब तक दर्शक चाहेंगे सलमान खान और दबंग जैसी फिल्में दर्शकों के आईक्यू लेवल का मजाक बनाती रहेंगी।