Saturday, February 16, 2013

'मर्डर 3' बताती है कि बेडसीन के बगैर भी एक सस्पेंस फिल्म बनायी जा सकती है।

भट्ट कैंप की फिल्मों में कहानी (ज्यादातर कॉपी की हुई) एक ऐसी खूंटी होती है जिस पर अच्छे गाने, हॉट सीन, विदेशी लोकशन से सजे कुछ भव्य दृश्य, लाउड रोमांस और थोड़े-बहुत रहस्य के ताने-बाने टांगे जाते हैं। 'मर्डर 3' इस लिहाज से थोड़ी बेहतर फिल्म है। फिल्‍म की कहानी खुद में इतनी सक्षम है कि उसे एक्सपोजर जैसे कास्मैटिक की जरूरत नहीं पड़ती। भले ही यह हॉलीवुड फिल्म 'हिडेन फेस' की कॉपी हो लेकिन इसका 'बॉलीवुडीकरण' ऐसा होता है कि वह दर्शकों का मनोरंजन करती हैं। भट्ट कैंप की दूसरी फिल्म की तरह इस फिल्म में न तो लंबे-लंबे जुनूनी स्मूच हैं और न ही अंतरंग दृश्य। फिल्म में उतना ही एक्सपोजर है जितना कि इन दिनों बन रही फिल्मों में रिवाज है। 'मर्डर 3' की कहानी का 'मर्डर' और 'मर्डर 2' से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक पूरी तरह से नयी फिल्म है। 'मर्डर 3' जिस जल्दबाजी में लगभग अधूरी छोड़कर खत्म की गयी है उससे यह संकेत जरूर मिलता है कि 'मर्डर 4' बनेगी और वह सही मायने में 'मर्डर 3' की सीक्वल फिल्म होगी। महेश, मुकेश और विक्रम भट्ट के बाद विशेष भट्ट, भट्ट कैंप के नए चेहरे हैं। अपने निर्देशन में बनी इस पहली फिल्म से उन्होंने साफ कर दिया है कि वह भी भट्ट कैंप की कॉपी-पेस्ट नीति पर चलते रहेंगे। जब फिल्म की लागत महज पांच करोड़ हो तो वह हिट के खांचे में आसानी से आ भी जाएगी। कहानी में बांध रखने का हुनर था फिल्म तीन पात्रों विक्रम (रणदीप हुड्डा), रोशनी (अदिति राव) और निशा (सारा लोरेन) के इर्द-गिर्द घूमती है। अपनी गुम हो चुकी प्रेमिका की तलाश में शराब के नशे में डूब रहे विक्रम को निशा मिलती है। वह निशा के साथ नयी जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है। विक्रम और निशा मुंबई से बाहर एक म्यूजियमनुमा घर में रहना शुरू कर देते हैं। निशा को उस म्यूजियम में अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। उस घर में रहते हुए निशा को एहसास होता है कि घर में कोई बंद है। वह अपनी कल्पना लगाकर उससे बात करना शुरू करती है। यहां एक बड़े रहस्य का खुलासा होता है। विक्रम की प्रेमिका रोशनी मरी नहीं होती है ‌बल्कि वह उसी घर में कैद होती है। वह कैद कैसे होती है और फिर उसे कैद से निकालता कौन है यही 'मर्डर 3' का सस्पेंस है। कहानी की एक कमजोर कड़ी यह है कि जब क्लाइमेक्स में दर्शक अच्छा ड्रामा देखने के लिए खुद को तैयार कर चुके होते हैं तभी अचानक फिल्म खत्म हो जाती है। शायद मर्डर 4 की गुजांइश बनाने के लिए फिल्म बहुत सी बातों को दर्शकों के साथ साझा नहीं करना चाहती। अभिनय सब थोड़ा बहुत कर ही लेते हैं भट्ट कैंप की फिल्मों के पुरुष पात्रों की खासियत यह होती है कि एक नहीं कई लड़कियां उन पर बारी-बारी से फिदा होती हैं। नायक खूससूरती के साथ अपने इस मल्टीअफेयर को मैनेज करता है। इसी के चलते कुछ गुनाह भी होते हैं। 'मर्डर 3' में यह काम रणदीप हुड्डा करते हैं। चूंकि इमरान हाशमी लंबे समय से ऐसी भूमिकाएं करते आ रहे हैं इसलिए रणदीप की बड़ी चुनौती उन्हें हाशमी जैसा दिखना था। हाव-भाव से नहीं बल्कि अच्छी डायलॉग डिलवरी से रणदीप ने उनकी जगह ले तो ली पर वह वैसे रोमांटिक लवर नहीं लगे जैसे कि भट्ट कैंप की फिल्मों को जरूरत होती है। रणदीप वैसे ही लगे जैसे वह दूसरी फिल्मों में लगते हैं। इंटरवल के पहले पर्दे से नदारद रहीं अदिति राव इंटरवल के बाद पूरी तरह से छायी रहती हैं। प्रेमी छिन जाने के डर से जी रही प्रेमिका का किरदार तो उन्होंने बड़े औसत तरीके से निभाया है पर रहस्यमयी कोठरी में बंद हो जाने के बाद तड़पते हुए जिंदगी जीने के किरदार में वह बेहतर लगी हैं। सारा लोरेन को एक सजावटी प्रेमिका की भूमिका करनी थी वह उन्होंने ठीक-ठाक ही निभा दिया है। विशेष की पहली फिल्म, गंदगी कम करने की कोशिश भट्ट कैंप की अगली पीढ़ी निर्देशन में आ गयी है। मुकेश भट्ट के बेटे विशेष भट्ट, इस फिल्म को निर्देशित कर रहे हैं। एक इंटरव्यू में विशेष भट्ट ने भट्ट कैंप की फिल्मों की क्वालिटी पर प्रश्‍न खड़ा करते हुए कहा था कि हमारी फिल्में पैसे तो जरूर कमा रही हैं पर उनकी गुणवत्ता गिरी है। इस लिहाज से देखें तो 'मर्डर 3' में बेडरूम और किसिंग सीन का उस तरह सहारा नहीं लिया गया है जैसे कि भट्ट कैंप की आदत और पहचान रही है। क्वॉलिटी बेहतर करने के‌ लिए किया गया यह काम हो सकता है कि कई दर्शकों को रास न आए। कुछ अच्छी बाते भी हैं। 'मर्डर 3' के पास एक अदद कहानी, एक जिज्ञासा और एक रहस्य है जिसकी वजह से दर्शक फिल्म से चिपके रहते हैं।फिल्म के संवाद भी अच्छे हैं। फ्लैशबैक और वर्तमान जिंदगी को दिखाने का क्रम भी बेहतर है। फिल्म के किरदार भले ही ग्लैमरस वर्ल्ड में रह रहे होते हैं पर वह बोलते उर्दू मिश्रित हिंदी हैं। यह कई बार फिल्म को अच्छा बनाता है। इस बारे गानों में वह मजा नहीं संगीत भट्ट कैंप की फिल्मों का मजबूत पक्ष माना जाता है। उनकी फ्लाप फिल्मों के गाने भी हिट रहते हैं। इस लिहाज से 'मर्डर 3' थोड़ा निराश करती है। प्रीतम के संगीत में विविधता तो है पर गाने ऐसे नहीं हैं जिन्हें याद रखा जाए या फिल्म के साथ भी गुनगुनाया जाए। फिल्म के सभी गानों में "तेरी झुकी नजर" और "मत आजमा रे" सुनने में बेहतर लगते हैं। क्यों देखें एक अच्छी सस्पेंस फिल्म के लिए। थोड़े-बहुत रहस्य के लिए और थोड़ा एक्सपोजर देखने के लिए। क्यों न देखें यदि आप भट्ट कैंप के फिल्में बनाने के तरीके से ही नाराज चल रहे हों।