Saturday, October 6, 2012
इंगलिश स्पोकन कक्षाओं से भारत में बनता रहेगा आत्मविश्वास, फिल्म भी प्रमाणित करती है
कस्बों और गांवों के लडक़े जब लल्लू लाल, करमा देवी, अहिल्या देवी या रघुराज प्रताप सिंह जैसे नामों वाले महाविद्यालयों से पढ़ाई करके निकलते हैं तो उनकी प्राथमिकता सबसे पहले आत्मविश्वास प्राप्त करने की होती है। जो कि वह मानकर चल रहे होते हैं कि वह उनके पास नहीं है। उनका अनकॉसेस माइंड मानता है कि आत्मविश्वास नाम की चीज शहर के लोगों में पाई जाती है। उनकी निगाह में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो आत्मविश्वासी होते हैं। यह सभी आत्मविश्वासी लोग अंग्रेजी में बात करते हैं। आत्मविश्वास पाने की यह फैक्ट्रियां इंगलिश स्पोकन क्लास के नाम से जानी जाती हैं। हर साल इन फैक्ट्रियां से फुटकर और थोक में आत्मविश्वास निकल कर यहां वहां पहुंचता है। यह कहां पहुंचता है इससे हमारा कोई लेना देना नहीं है।
हमारी मान्यताओं में अंग्रेजी को कभी भी सिर्फ भाषा के रूप में नहीं देखा गया है। इसे ज्ञान के रूप में माना जाता है। यह माना जाता है कि यदि आप अंग्रेजी में बोल रहे तो यह संभव ही नहीं कि आप गलत बोल रहे हो। अंग्रेजी के प्रति हमारे अतिरिक्त सम्मान की धारणा को फिल्म अंत में जाकर तोड़ती है। इसके पहले फिल्म की नायिका तब-तब खुश होती है जब वह अपनी अंग्रेजी से बात कहने में सफल हो जाती है। यह फिल्म की फिलॉसफिकल असफलता है। एक फिल्म के रूप में इंगलिश-विंगलिश एक प्रभावी फिल्म है। फिल्म सिर्फ अंग्रेजी के ज्ञान की नहीं हमारी मनोविज्ञान की भी परीक्षा लेती चलती है। हमारी एक मनोवृति होती है कि अपने करीबी की जो जिस कमी की वजह से उस पर दया करते हैं जब वह व्यक्ति उस कमी को ठीक करने के लिए गंभीर होता है तो हम उसके प्रति ईष्या का भाव रखना शुरू कर देते हैं। फिल्म उन रिश्तों की भी समीक्षा करती चलती है कि जो एक समय के बाद सिर्फ प्रेम बरसाते हैं सम्मान नहीं। चीनी कम की तरह आर बल्कि कई फिलॉसिफी देने में सफल रहे हैं।
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