'मर्दानी 2' रेप विषय पर बनी ऐसी फिल्म है जो एक पल भी यह बात नहीं भूलती कि वह एक मुंबईया फिल्म है, जिसका मकसद लोगों का मनोरंजन करना है।
वह रेप के भावनात्मक और संवेदनशील द्वंद में खुद को न उलझाकर रेपिस्ट और उसे पकड़ने वाली पुलिस ऑफिसर के बीच की नूराकुश्ती पर खुद को फोकस करना चाहती है।
रेपिस्ट, जिसे आमतौर पर घिनौना माना जाता है यह फिल्म उसे हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह स्टेबलिश करती है, जो शातिर भी है और स्मार्ट भी। मर्दानी उसे अच्छे सीन भी देती है और संवाद भी। 'विलेन मजबूत होगा तो हीरो भी मजबूत दिखेगा' वाली लीक पकड़कर यह फिल्म क्लाइमेक्स तक आते-आते रेप को भूल जाती है और सिर्फ विलेन की चालें और पुलिस की जांबाजी को याद रखती है। बचे हुए समय में यह फिल्म यह भी याद दिलाने की कोशिश करती है कि यह काम एक महिला पुलिस ऑफिसर ने किया है।
फिल्म विलेन को मजबूत करने के साथ-साथ उसके द्वारा किए जाने वाले अपराधों को भी एक वजह देने की कोशिश करती है। एक रेपिस्ट जिसे फिल्म सिर्फ एक रेपिस्ट नहीं मानती और अंत तक आते-आते वह उसे एक साइकोलॉजिकल क्रिमनल की तरह दिखाने लगती है। जाहिर सी बात है कि साइकोलॉजिकल क्रिमिनल के प्रति हमारे मन में वैसा लिजा-लिजा घृणा वाला भाव पैदा नहीं होता जैसा रेपिस्ट को लेकर होता है।
इस फिल्म को देखते हुए आपको दर्जनों ऐसी देशी-विदेशी फिल्में याद आ सकती हैं जिसमें विलेन अपने किसी कॉम्लेक्स की वजह से क्रिमिनल बन गया होता है। इस फिल्म का रेपिस्ट विलेन आपको क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म द डॉर्क नाइट के जोकर या एआर मुर्गादास की तमिल-तेलुगू फिल्म स्पाइडर के विलेन की नकल करता हुआ भी लग सकता है। ऐसा विलेन जो क्रूर तो है पर साथ में 'कूल' भी है। उसके पास हीरो के सामने टिके रहने की क्षमता है और उसे हराने की भी।
'मर्दानी 2' के साथ सुविधा और संयोग ये है कि यह फिल्म ऐसे समय पर आई है जब देश के अखबार और टीवी के प्राइम टाइम रेप की खबरों से रंगे पड़े हैं। पुलिस रेपिस्टों का एनकांउटर कर दे रही है और चारों ओर वाह-वाह की आवाजें आ रही है। पर फिल्म की टोन रेप को लेकर वैसी नहीं है। यह रेप पीड़िता, उनके परिवारों की हालत और समाज में उसके गुस्से की तरफ अपना कैमरा नहीं घुमाती है। बल्कि उन दृश्यों को रचने में व्यस्त रखती है जिसमें पुलिस और विलेन के बीच शह और मात का खेल चलता दिखे। कभी वह जीते तो कभी वो हारे। फिल्म की सबसे ज्यादा दिलचस्पी विलेन के अपराध करने के तरीकों और एक पुलिस ऑफिसर के महिला होने पर है।
'मर्दानी 2', स्त्री सशक्कतीकरण की कुछ बहुत ही वाजिब बातें निहायत सस्ते तरीके, और घिसे-पिटे संवादों के साथ करती है। फिल्म के क्लाइमेक्स सीन के ठीक पहले मर्दानी बनी रानी मुखर्जी एक टीवी इंटरव्यू दे रही होती हैं जिसमे वह पुरुषों से बराबरी का हक मांग रही होती हैं। वह पुरुष जो उनके ऑफिस में भी हैं और जिन्हें एक महिला से ऑर्डर लेने में शर्म आती है। ये सीन अब अच्छे नहीं लगते और किसी महिला को स्टीरियोटाइप ही फील कराते हैं।
मर्दानी 2 देखते समय आपको नेटफ्लिक्स पर कुछ महीनों पहले स्ट्रीम हुई वेब सीरिज 'दिल्ली क्राइम' की भी याद आती है और 'आर्टिकल' 15 की भी। निर्भया गैंगरेप पर बेस्ड करके बनाई 'दिल्ली क्राइम', क्राइम के सिरों को जिस तरह से खोलती है, अपराधियों का बैकग्राउंड तलाशती है, बिना रेप दिखाए रेप की यातना को महसूस कराती है वह बार-बार इस फिल्म में दर्शकों को याद आ सकता है।
मर्दानी 2, रानी मुखर्जी के लिए अपने पति द्वारा कुछ-कुछ समय के बाद दिया जाने वाला तोहफा है। यह फिल्म आदित्य ने रानी के लिए ही बनाई है। रानी मुखर्जी का बढ़ता वजन और चेहरे पर बढ़कर झूलती चर्बी उन्हें इस रोल की कास्टिंग के लिए रोक देती यदि वह आदित्य की बीवी ना होतीं। पर ये मियां-बीवी का मामला है। इसमें फिल्म के निर्देशक गोपी पुथरन बहुत दखल नहीं दे सकते थे, दर्शकों को भी नहीं देनी चाहिए...रेपिस्ट बने विशाल जेठा ने उम्दा काम किया है।
वह रेप के भावनात्मक और संवेदनशील द्वंद में खुद को न उलझाकर रेपिस्ट और उसे पकड़ने वाली पुलिस ऑफिसर के बीच की नूराकुश्ती पर खुद को फोकस करना चाहती है।
रेपिस्ट, जिसे आमतौर पर घिनौना माना जाता है यह फिल्म उसे हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह स्टेबलिश करती है, जो शातिर भी है और स्मार्ट भी। मर्दानी उसे अच्छे सीन भी देती है और संवाद भी। 'विलेन मजबूत होगा तो हीरो भी मजबूत दिखेगा' वाली लीक पकड़कर यह फिल्म क्लाइमेक्स तक आते-आते रेप को भूल जाती है और सिर्फ विलेन की चालें और पुलिस की जांबाजी को याद रखती है। बचे हुए समय में यह फिल्म यह भी याद दिलाने की कोशिश करती है कि यह काम एक महिला पुलिस ऑफिसर ने किया है।
फिल्म विलेन को मजबूत करने के साथ-साथ उसके द्वारा किए जाने वाले अपराधों को भी एक वजह देने की कोशिश करती है। एक रेपिस्ट जिसे फिल्म सिर्फ एक रेपिस्ट नहीं मानती और अंत तक आते-आते वह उसे एक साइकोलॉजिकल क्रिमनल की तरह दिखाने लगती है। जाहिर सी बात है कि साइकोलॉजिकल क्रिमिनल के प्रति हमारे मन में वैसा लिजा-लिजा घृणा वाला भाव पैदा नहीं होता जैसा रेपिस्ट को लेकर होता है।
इस फिल्म को देखते हुए आपको दर्जनों ऐसी देशी-विदेशी फिल्में याद आ सकती हैं जिसमें विलेन अपने किसी कॉम्लेक्स की वजह से क्रिमिनल बन गया होता है। इस फिल्म का रेपिस्ट विलेन आपको क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म द डॉर्क नाइट के जोकर या एआर मुर्गादास की तमिल-तेलुगू फिल्म स्पाइडर के विलेन की नकल करता हुआ भी लग सकता है। ऐसा विलेन जो क्रूर तो है पर साथ में 'कूल' भी है। उसके पास हीरो के सामने टिके रहने की क्षमता है और उसे हराने की भी।
'मर्दानी 2' के साथ सुविधा और संयोग ये है कि यह फिल्म ऐसे समय पर आई है जब देश के अखबार और टीवी के प्राइम टाइम रेप की खबरों से रंगे पड़े हैं। पुलिस रेपिस्टों का एनकांउटर कर दे रही है और चारों ओर वाह-वाह की आवाजें आ रही है। पर फिल्म की टोन रेप को लेकर वैसी नहीं है। यह रेप पीड़िता, उनके परिवारों की हालत और समाज में उसके गुस्से की तरफ अपना कैमरा नहीं घुमाती है। बल्कि उन दृश्यों को रचने में व्यस्त रखती है जिसमें पुलिस और विलेन के बीच शह और मात का खेल चलता दिखे। कभी वह जीते तो कभी वो हारे। फिल्म की सबसे ज्यादा दिलचस्पी विलेन के अपराध करने के तरीकों और एक पुलिस ऑफिसर के महिला होने पर है।
'मर्दानी 2', स्त्री सशक्कतीकरण की कुछ बहुत ही वाजिब बातें निहायत सस्ते तरीके, और घिसे-पिटे संवादों के साथ करती है। फिल्म के क्लाइमेक्स सीन के ठीक पहले मर्दानी बनी रानी मुखर्जी एक टीवी इंटरव्यू दे रही होती हैं जिसमे वह पुरुषों से बराबरी का हक मांग रही होती हैं। वह पुरुष जो उनके ऑफिस में भी हैं और जिन्हें एक महिला से ऑर्डर लेने में शर्म आती है। ये सीन अब अच्छे नहीं लगते और किसी महिला को स्टीरियोटाइप ही फील कराते हैं।
मर्दानी 2 देखते समय आपको नेटफ्लिक्स पर कुछ महीनों पहले स्ट्रीम हुई वेब सीरिज 'दिल्ली क्राइम' की भी याद आती है और 'आर्टिकल' 15 की भी। निर्भया गैंगरेप पर बेस्ड करके बनाई 'दिल्ली क्राइम', क्राइम के सिरों को जिस तरह से खोलती है, अपराधियों का बैकग्राउंड तलाशती है, बिना रेप दिखाए रेप की यातना को महसूस कराती है वह बार-बार इस फिल्म में दर्शकों को याद आ सकता है।
मर्दानी 2, रानी मुखर्जी के लिए अपने पति द्वारा कुछ-कुछ समय के बाद दिया जाने वाला तोहफा है। यह फिल्म आदित्य ने रानी के लिए ही बनाई है। रानी मुखर्जी का बढ़ता वजन और चेहरे पर बढ़कर झूलती चर्बी उन्हें इस रोल की कास्टिंग के लिए रोक देती यदि वह आदित्य की बीवी ना होतीं। पर ये मियां-बीवी का मामला है। इसमें फिल्म के निर्देशक गोपी पुथरन बहुत दखल नहीं दे सकते थे, दर्शकों को भी नहीं देनी चाहिए...रेपिस्ट बने विशाल जेठा ने उम्दा काम किया है।
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