हिंदी सिनेमा स्पोटर्स, पॉलिटिकल आटोबॉयोग्राफी, बॉयोपिक और वुमन सिन्ट्रिक विषय वाली फिल्मों को लेकर इतना बौना है कि उन विषयों पर बनी औसत फिल्में कई बार ओवररेटेड हो जाती हैं।
शायद उनकी ज्यादा तारीफ करके हम अपनी गिल्ट कम करना चाहते हैं। पंगा एक ऐसी ही फिल्म है, जो औसत होने के साथ-साथ सुस्त और थोपी सी मालूम पड़ती है, लेकिन विषय की वजह से यह ओवररेटेड बन गई।
पंगा एक पूर्व महिला कबड्डी खिलाड़ी जया निगम की कहानी है। करियर के पीक पर उसे अपने अनप्लांड बच्चे की वजह से अपने खेल से दूर होना पड़ता है। पर वह इसी खेल की वजह से मिली रेलवे की नौकरी, अपने 'एक्सट्रा केयरिंग, 'बोरियत की हद तक हंसमुख और उपलब्ध' पति और एक प्यारे से बच्चे के साथ भोपाल के सरकारी रेलवे कॉलोनी के एक मकान में रह रही होती है। जया का पति भी रेलवे में इंजीनियर है। वो रेलवे की एक कैंटीन में मिले होते हैं और तीन मुलाकातों के बाद माला बदल लेते हैं।
फिल्म के शुरुआती दृश्य दिखाते हैं कि जया अपने जीवन में खुश है। कबड्डी की टीम में खेलते रहना उसकी जिंदगी का अंतिम हासिल नहीं है, वह यह बात गहराई से मानती है। वह अपनी वर्तमान जिंदगी में रमी हुई है और संतुष्ट होने की हद तक खुश है। बाद में कुछ कुछ घटनाओं के जरिए उसका अतीत कुरेदा जाता है और एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद उसका बेटा चाहता है कि उसकी मां फिर से कबड्डी में कमबैक करे। जया वापस आती है। कई लेयर्स में आने वाले हर्डेल को पार करते हुए अंततः वह इंडियन टीम का फिर से हिस्सा बन जाती है।
पंगा फिल्म इस तथ्य को मजबूती से पकड़कर चलना चाहती है कि वह पूरी तरह से एक स्पोर्ट फिल्म नहीं है। उसका फोकस एक महिला के कमबैक पर होता है। खासकर एक मां का कमबैक। फिल्म का हर सीन और उसकी अंडरकरेंट मां के कमबैक के रुप में लगातार फिल्म में बनी रहती है है।
फिल्म देखते-देखते हम पाते हैं कि ऐसी हूबहू तो नहीं लेकिन ऐसी कई फिल्में हम पहले देख चुके हैं जैसी पंगा हमें दिखा रही है। पंगा का कोई भी सीन चक दे इंडिया, सुल्तान और दंगल की कॉपी नहीं है लेकिन फिल्म की मूल आत्मा इन तीनों फिल्मों की सामूहिक आत्मा का मिक्चर लगती है।
इस फिल्म की निर्देशक अश्वनी अय्यर तिवारी हैं। अश्चनी दंगल फेम नीतेश तिवारी की पत्नी है। नीतेश इस फिल्म के को-राइटर भी हैं। कई जगहों पर एक तरह का परिवेश होने की वजह से यह फिल्म कई बार दंगल की छोटी बहन मालूम पड़ती है। दंगल और पंगा भाई बहन होने की वजह से कई बार उनके चेहरे के कुछ हिस्से और बोलियों का स्टाईल मैच कर जाता है। 'पहले से देखा सा लगना' फिल्म को प्रिडिक्टबल बनाता है। हमें ऐसा लगता है कि हम फिल्म के कर्व, उतार-चढ़ाव और क्लाइमेक्स से वाकिफ हैं और फाइनली क्या होना है ये हम जानते हैं।
पंगा की सबसे बड़ी कमजोरी जया निगम के कमबैक करने की वजहों में छिपी हुई हैं। ये वजहें कई जगहों पर बनावटी हैं और कुछ जगहों पर ओवरस्टीमेट। फिल्म के एक महत्वपूर्ण सीन में (जिसे फिल्म अपना टर्निंग प्वाइंट भी कह सकती है) जया को अपने बच्चे की स्पोर्ट्स एक्टिविटी देखने के लिए ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाती है और उसका सीनियर उसे एक घंटे लेट आने पर एक दिन पहले जलील कर चुका होता है। भारत देश के सरकारी नौकरी के सिस्टम में एक घंटा देर से आने और 'पारिवारिक जरुरतों के लिए' छुट्टी लेना कितनी सहज प्रक्रिया है इससे हम वाकिफ हैं। एक और सीन में जया निगम को स्कूली कबड्डी टीम के बच्चे नहीं पहचान पाते है। वह उदास हो जाती है। ऐसी चार-पांच वजहें मिलाकर जया निगम की वापसी का प्लाट बुना जाता है।
कमबैक करने के बाद का हिस्सा अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत है। कुछ खुरदरे किरदारों से फिल्म हमें तआरुफ कराती है जो फिल्म को रियल बनाते हैं। फिल्म में जया निगम की जिंदगी के दो सबसे करीबी किरदार उसके पति और उसकी कबड्डी दोस्त- ट्रेनर है। ये दोनों ही किरदार बेहद सतही तरीके से लिखे गए हैं। बहुत सारा स्पेस खाने के बाद भी ये किरदार अपनी कोई महक नहीं छोड़ पाते। पंजाबी फिल्मों के परिचित चेहरे जस्सी गिल एक पति के रुप में बेहद सपाट लगते हैं। उनका हर समय हंसते रहना दर्शकों को चिढ़चिढ़ा बना सकता है। दोस्त बनीं रिचा चड्ढा की स्टाईल, डायलॉग बोलने का ढंग उन्हें फुकरे से बाहर ही नहीं निकलने दे रहा। इस बीच अमेजॉन प्राइम की वेब सीरिज इनसाइड ऐज और सेक्शन 375 फिल्में करने के बाद भी रिचा फुकरे के एक्सटैंशन रोल में ही लगती हैं।
कंगना रनौत बॉलीवुड की नई सलमान खान हैं। उनकी फिल्मों में सिर्फ वही होती हैं। इसमें शक नहीं कि उन्होंने एक बार फिर उम्दा एक्टिंग की है लेकिन सिर्फ एक्टिंग के दम पर फिल्में अच्छी बनतीं तो इरफान का मुकाम आमिर जैसा और विजय आनंद का मुकाम अमिताभ जैसा होता। एक्टिंग में कंगना को चुनौती उनके आठ साल के बच्चे का किरदार निभाने वाले यज्ञ भसीन से मिली है। तमाम नकली किरदारों के बीच वह एक असली और याद रखने वाला किरदार बन जाता है। नीना गुप्ता और राजेश तैलंश के पास जितना करने को था उन्होंने किया। पंगा आप देख सकते हैं। ये बुरी फिल्म नहीं है। ये बस ओवररेटेड और थोपी हुई फिल्म है।
शायद उनकी ज्यादा तारीफ करके हम अपनी गिल्ट कम करना चाहते हैं। पंगा एक ऐसी ही फिल्म है, जो औसत होने के साथ-साथ सुस्त और थोपी सी मालूम पड़ती है, लेकिन विषय की वजह से यह ओवररेटेड बन गई।
पंगा एक पूर्व महिला कबड्डी खिलाड़ी जया निगम की कहानी है। करियर के पीक पर उसे अपने अनप्लांड बच्चे की वजह से अपने खेल से दूर होना पड़ता है। पर वह इसी खेल की वजह से मिली रेलवे की नौकरी, अपने 'एक्सट्रा केयरिंग, 'बोरियत की हद तक हंसमुख और उपलब्ध' पति और एक प्यारे से बच्चे के साथ भोपाल के सरकारी रेलवे कॉलोनी के एक मकान में रह रही होती है। जया का पति भी रेलवे में इंजीनियर है। वो रेलवे की एक कैंटीन में मिले होते हैं और तीन मुलाकातों के बाद माला बदल लेते हैं।
फिल्म के शुरुआती दृश्य दिखाते हैं कि जया अपने जीवन में खुश है। कबड्डी की टीम में खेलते रहना उसकी जिंदगी का अंतिम हासिल नहीं है, वह यह बात गहराई से मानती है। वह अपनी वर्तमान जिंदगी में रमी हुई है और संतुष्ट होने की हद तक खुश है। बाद में कुछ कुछ घटनाओं के जरिए उसका अतीत कुरेदा जाता है और एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद उसका बेटा चाहता है कि उसकी मां फिर से कबड्डी में कमबैक करे। जया वापस आती है। कई लेयर्स में आने वाले हर्डेल को पार करते हुए अंततः वह इंडियन टीम का फिर से हिस्सा बन जाती है।
पंगा फिल्म इस तथ्य को मजबूती से पकड़कर चलना चाहती है कि वह पूरी तरह से एक स्पोर्ट फिल्म नहीं है। उसका फोकस एक महिला के कमबैक पर होता है। खासकर एक मां का कमबैक। फिल्म का हर सीन और उसकी अंडरकरेंट मां के कमबैक के रुप में लगातार फिल्म में बनी रहती है है।
फिल्म देखते-देखते हम पाते हैं कि ऐसी हूबहू तो नहीं लेकिन ऐसी कई फिल्में हम पहले देख चुके हैं जैसी पंगा हमें दिखा रही है। पंगा का कोई भी सीन चक दे इंडिया, सुल्तान और दंगल की कॉपी नहीं है लेकिन फिल्म की मूल आत्मा इन तीनों फिल्मों की सामूहिक आत्मा का मिक्चर लगती है।
इस फिल्म की निर्देशक अश्वनी अय्यर तिवारी हैं। अश्चनी दंगल फेम नीतेश तिवारी की पत्नी है। नीतेश इस फिल्म के को-राइटर भी हैं। कई जगहों पर एक तरह का परिवेश होने की वजह से यह फिल्म कई बार दंगल की छोटी बहन मालूम पड़ती है। दंगल और पंगा भाई बहन होने की वजह से कई बार उनके चेहरे के कुछ हिस्से और बोलियों का स्टाईल मैच कर जाता है। 'पहले से देखा सा लगना' फिल्म को प्रिडिक्टबल बनाता है। हमें ऐसा लगता है कि हम फिल्म के कर्व, उतार-चढ़ाव और क्लाइमेक्स से वाकिफ हैं और फाइनली क्या होना है ये हम जानते हैं।
पंगा की सबसे बड़ी कमजोरी जया निगम के कमबैक करने की वजहों में छिपी हुई हैं। ये वजहें कई जगहों पर बनावटी हैं और कुछ जगहों पर ओवरस्टीमेट। फिल्म के एक महत्वपूर्ण सीन में (जिसे फिल्म अपना टर्निंग प्वाइंट भी कह सकती है) जया को अपने बच्चे की स्पोर्ट्स एक्टिविटी देखने के लिए ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाती है और उसका सीनियर उसे एक घंटे लेट आने पर एक दिन पहले जलील कर चुका होता है। भारत देश के सरकारी नौकरी के सिस्टम में एक घंटा देर से आने और 'पारिवारिक जरुरतों के लिए' छुट्टी लेना कितनी सहज प्रक्रिया है इससे हम वाकिफ हैं। एक और सीन में जया निगम को स्कूली कबड्डी टीम के बच्चे नहीं पहचान पाते है। वह उदास हो जाती है। ऐसी चार-पांच वजहें मिलाकर जया निगम की वापसी का प्लाट बुना जाता है।
कमबैक करने के बाद का हिस्सा अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत है। कुछ खुरदरे किरदारों से फिल्म हमें तआरुफ कराती है जो फिल्म को रियल बनाते हैं। फिल्म में जया निगम की जिंदगी के दो सबसे करीबी किरदार उसके पति और उसकी कबड्डी दोस्त- ट्रेनर है। ये दोनों ही किरदार बेहद सतही तरीके से लिखे गए हैं। बहुत सारा स्पेस खाने के बाद भी ये किरदार अपनी कोई महक नहीं छोड़ पाते। पंजाबी फिल्मों के परिचित चेहरे जस्सी गिल एक पति के रुप में बेहद सपाट लगते हैं। उनका हर समय हंसते रहना दर्शकों को चिढ़चिढ़ा बना सकता है। दोस्त बनीं रिचा चड्ढा की स्टाईल, डायलॉग बोलने का ढंग उन्हें फुकरे से बाहर ही नहीं निकलने दे रहा। इस बीच अमेजॉन प्राइम की वेब सीरिज इनसाइड ऐज और सेक्शन 375 फिल्में करने के बाद भी रिचा फुकरे के एक्सटैंशन रोल में ही लगती हैं।
कंगना रनौत बॉलीवुड की नई सलमान खान हैं। उनकी फिल्मों में सिर्फ वही होती हैं। इसमें शक नहीं कि उन्होंने एक बार फिर उम्दा एक्टिंग की है लेकिन सिर्फ एक्टिंग के दम पर फिल्में अच्छी बनतीं तो इरफान का मुकाम आमिर जैसा और विजय आनंद का मुकाम अमिताभ जैसा होता। एक्टिंग में कंगना को चुनौती उनके आठ साल के बच्चे का किरदार निभाने वाले यज्ञ भसीन से मिली है। तमाम नकली किरदारों के बीच वह एक असली और याद रखने वाला किरदार बन जाता है। नीना गुप्ता और राजेश तैलंश के पास जितना करने को था उन्होंने किया। पंगा आप देख सकते हैं। ये बुरी फिल्म नहीं है। ये बस ओवररेटेड और थोपी हुई फिल्म है।
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