मलंग फिल्म बनाने की रेसिपी समझ लीजिए। ये बेहद आसान है। फिर इसे आप घर बैठे कभी भी बना सकते हैं, अपने लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए...
'सिनेमा शेक' बनाने वाला एक मिक्सर ग्राइंडर लीजिए। एक छोटी कटोरी में रिवेंज स्टोरी अपने पास रख लीजिए। एक बड़े बाऊल में मीडियम स्पून भरके ,किल बिल, हेट स्टोरी, गजनी को बराबर मात्रा में उसमें डालिए। अवैध संबंध, नाजायज संबंध, नामर्द जैसी महेश भट्ट की फिलॉसिफी के छोटे-छोटे टुकड़े उसमें मिलाइए। फिर स्वादानुसार उसमें बेडरुम सीन, गोवा, गोवा के बीच, सनसेट, उसकी लेट नाइट पार्टियां, ड्रग्स, बियर, बिकनी, खारा पानी, पानी में किस, बिस्तर में किस, कार में किस, किचन में किस, रेत में किस और पहाड़ में किस सीन डालकर देर तक फेटिए। फिर उसे एक बर्तन में ढक दीजिए। फूलने दीजिए। अब एक फ्राई पेन में दो रोमांटिक सॉन्ग, एक पार्टी सॉन्ग और मिथुन की आवाज में एक सैड सॉन्ग को धीमी आँच में पकाइए। फिर इन सारी सामग्री को मिक्सर में डाल दीजिए। मिक्सर चलाइए। मलंग तैयार। 'जिंदगी मिलेगी न दोबारा' और 'एक विलेन' की गार्निशिंग करके मेहमानों को गरमा गरम परोसिए...
मोहित सूरी की मलंग एक ऐसा ही बकवास किस्म का शेक है जिसका अपना कोई टेस्ट नहीं है। यह तमाम हिंदी फिल्मों के प्लॉट, सीन और थीम को कॉपी करने वाली फिल्म है। मलंग भले ही भट्ट कैंप की फिल्म नहीं है लेकिन 'भट्ट की छाया' फिल्म में दिखती है। मोहित सूरी का पूरा करियर विशेष फिल्मस के लिए फिल्म बनाते हुए बीता है। इसलिए एक नए बैनर के बाद भी इस फिल्म में भट्ट कैंप का अक्स साफ नजर आता है। ना सिर्फ दृश्यों को फिल्माने में बल्कि किरदारों की लेयर्स दिखाने में भी।
रिश्तों को लेकर फिल्म उन्हीं फिलॉसिफी के गुब्बारे उड़ाती है जो महेश भट्ट की पहचान है। फिल्म के किरदार अल्ट्रामॉर्डन होते हैं। लेकिन हीरोईन के प्रेग्नेंट होने की खबर मिलती ही उसके अंदर माला सिन्हां या वैजयंती माला स्टाईल वाली हीरोइन जाग उठती है। वह एकदम से बदल जाती है। उधर कल रात तक हर तरह के नशे का आदी बेरोजगार किंतु बॉडी बिल्डर हीरो ये खबर सुनते ही अगली सुबह से राज कपूर या राजेंद्र कुमार बन उठता है। वो हीरोइन के पेट को बहुत ध्यान से देखता है, उसकी आंखें डबडबा आती हैं। उसी पल वो तय करता है कि अब वह एक अच्छा आदमी बनेगा। फिर उसे नशे के पाउडर को एटीएम कार्ड से पतली पतली लाइनें बनाते हुए नहीं दिखाया जाता। काम वो फिर भी नहीं करता।
फिल्म के साथ समस्या यही है कि उसकी अपनी कोई आत्मा नहीं है। उसके किरदार अपने नहीं हैं। वह उधार के किरदारों और कहानी वाली फिल्म लगती है। मूल रुप से रिवेंज पर आधारित इस फिल्म का ज्यादातर भाड़े का है। ओरिजनल रुप से इसके पास जो कहानी है वह बचकानी है। विश्वास में ना आने वाली। कनेक्ट ना करने वाली।
मलंग फिल्म आदित्य राय कपूर को उनके उस खोल से जरूर निकालती है जो वह पिछले कुछ फिल्मों से उन्होंने पहन रखा था। ट्रेलर में बहुत कन्वेन्सिंग लगने वाली दिशा पाटनी बागी 2 का एक्सटेंशन लगती हैं। पीड़ित, सताई हुई। अनिल कपूर और कुणाल खेमु का किरदार जरूर इन दोनों से बेहतर लिखा गया है। लेकिन फिल्म इतनी स्टीरियोटाइप है कि कुणाल जैसे सक्षम अभिनेता के पास बहुत मौके नहीं थे। अगर आपने मलंग का ट्रेलर देख रहा है तो आप चाहें तो इसे छोड़ सकते हैं...ट्रेलर ही काफी है...
How to Play Baccarat - WORRIIT.COM
ReplyDeleteBaccarat is a popular table game, normally played by worrione two players. The objective is to win the number of tricks 바카라사이트 you งานออนไลน์ can guess. The main