सेक्स के लिए आमत्रंण देने वाली लड़की(लड़के के कथनानुसार) के साथ रेप की कोशिश करने वाला, सेक्स की तड़प खत्म करने के लिए अंडरवियर में बर्फ उड़ेल लेने वाला, हर तरह के नशे में डूबा रहने वाला, अपनी प्रेमिका को रेस्पेक्ट न देने वाला, हमारा हीरो नहीं हो सकता, बिल्कुल नहीं हो सकता।
ठीक है कोई दिक्कत नहीं। मत मानिए उसे हीरो। पर वो एक किरदार तो है। उसे एक किरदार की तरह तो देखिए। और क्यों चाहिए आपको हर फिल्म में हीरो। बिना हीरो के फ़िल्म नहीं देख पाएंगे आप? आप ऊब नहीं गए हिंदी सिनेमा के साफ सुथरे और परफेक्ट हीरो से?
उबकाई नहीं आती आपको सालों, दशकों से नैतिकता में लिपटे नायक को देख देखकर। बनावटी कृत्य करते देख जी नहीं करता ऐसा किरदार प्रोटोगेनिस्ट के रूप में पर्दे में दिखे जो अपनी बुराइयों और सीमाओं के साथ जीए। हर जगह वो आदर्श नहीं हैं, वो हर काम वैसा नहीं करता जो सामाजिक रूप से सही हो। तो कभी कभार ऐसे किरदारों से भी काम चला लीजिए जो हमारे जैसे हैं..
और फिर हिंदी सिनेमा से आदर्श नायक हमेशा के लिए चले थोड़ी गए। नावो मर गए हैं न ही कोमा में हैं। अपनी प्रेमिका ऐश्वर्या को असल जिंदगी में मारने वाले सलमान कहीं चले नहीं गए। वो यहीं हैं और 'बनावटी' भारत जैसे किरदार करते रहेंगे।
यही पर बच्चन भी हैं, बाकी कपूर्स और खान भी। फिर अक्षय तो हैं ही। शाहरुख भूखों मर जाएंगे लेकिन अंडरवियर के अंदर बर्फ डालने वाला सीन नहीं करेंगे। क्योंकि उनकी इमेज किरदार से भी बड़ी है और दर्शकों को शायद उनके किरदार से मतलब भी नहीं।
कबीर सिंह को एक किरदार के तौर पर देखा जाना ही उसके साथ न्याय होगा। यदि आप यहां भी हीरो वाले Do,s और dont लगा देंगे तो मुश्किल होगी...उसके लिए भी और आपके लिए भी..
ठीक है कोई दिक्कत नहीं। मत मानिए उसे हीरो। पर वो एक किरदार तो है। उसे एक किरदार की तरह तो देखिए। और क्यों चाहिए आपको हर फिल्म में हीरो। बिना हीरो के फ़िल्म नहीं देख पाएंगे आप? आप ऊब नहीं गए हिंदी सिनेमा के साफ सुथरे और परफेक्ट हीरो से?
उबकाई नहीं आती आपको सालों, दशकों से नैतिकता में लिपटे नायक को देख देखकर। बनावटी कृत्य करते देख जी नहीं करता ऐसा किरदार प्रोटोगेनिस्ट के रूप में पर्दे में दिखे जो अपनी बुराइयों और सीमाओं के साथ जीए। हर जगह वो आदर्श नहीं हैं, वो हर काम वैसा नहीं करता जो सामाजिक रूप से सही हो। तो कभी कभार ऐसे किरदारों से भी काम चला लीजिए जो हमारे जैसे हैं..
और फिर हिंदी सिनेमा से आदर्श नायक हमेशा के लिए चले थोड़ी गए। नावो मर गए हैं न ही कोमा में हैं। अपनी प्रेमिका ऐश्वर्या को असल जिंदगी में मारने वाले सलमान कहीं चले नहीं गए। वो यहीं हैं और 'बनावटी' भारत जैसे किरदार करते रहेंगे।
यही पर बच्चन भी हैं, बाकी कपूर्स और खान भी। फिर अक्षय तो हैं ही। शाहरुख भूखों मर जाएंगे लेकिन अंडरवियर के अंदर बर्फ डालने वाला सीन नहीं करेंगे। क्योंकि उनकी इमेज किरदार से भी बड़ी है और दर्शकों को शायद उनके किरदार से मतलब भी नहीं।
कबीर सिंह को एक किरदार के तौर पर देखा जाना ही उसके साथ न्याय होगा। यदि आप यहां भी हीरो वाले Do,s और dont लगा देंगे तो मुश्किल होगी...उसके लिए भी और आपके लिए भी..
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