Wednesday, June 15, 2011

यंगस्तान के खोखलेपन की कहानी:



फिल्म समीक्षा: शैतान

समांतर सिनेमा के एक ही मंच पर खड़े होने के बावजूद अनुराग कश्यप एंड कंपनी श्याम बेनेगल एंड कंपनी से उतनी ही दूर दिखती है जितनी कि वह चोपड़ा एंड घई से कंपनी से दूर होने का दावा करती है। शिल्प और विषय चयन के मामले अनुराग शायद विशाल भारद्वाज, सुधीर मिश्र या किरण राव के अधिक करीब जान पड़ते हैं। अनुराग की फिल्में शहरी दर्शकों में भी एक इलीट वर्ग की तलाश लगातार कर रहीं हैं। यह वर्ग आम जीवन में शेष वर्ग से अलग होने का दावा करता है। यह अलगाव बौद्धिक स्तर का है। चूंकि अनुराग इस वर्ग की समझ पर विश्वास करते हैं इसलिए उनकी कुछ फिल्में जैसे ब्लैक फ्राइडे और नो स्मोकिंग थोड़ी दुरूह भी हो गईं हैं। शैतान फिल्म से अनुराग का जुड़ाव निर्माता के रूप में है। फिल्म के निर्देशक बीज्वाय नांबियार हैं। उनकी नई-नवेली पत्नी काल्की ने फिल्म में प्रमुख भूमिका निभाई है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में शुरू के २० मिनट सिर्फ पात्रों की जीवन शैली दिखायी गई है। दृश्यों का कहीं कोई संयोजन या क्रम नहीं। एक सडक़ दुर्घटना के बाद शैतान एक फिल्म जैसी लगनी शुरू होती है। दुर्घटना के दोषी फिल्म के मुख्य पांच पात्र हैं। वह जेल जाना नहीं चाहते। पुलिस भी उन्हें जेल भेजना नहीं चाहती। इस उपकार के बदले वह उनसे २५ लाख रूपए चाहती है। छोटे-छोटे फॉर्मूलों और चालाकियों से अपनी जिंदगी मेंं बिलासता जुटाने वाले यह युवा पुलिस को यह रकम देने के लिए भी एक प्लान तैयार करते हैं। पूरी फिल्म इस अनमेच्योर प्लान के फेल होने और फेल होने की वजहों की कहानी कहती है। कहानी के आधार पर फिल्म में कुछ नयापन नहीं है। पुलिस ब्लैकमेलिंग, अपहरण और हत्याओं से बुनी पटकथा दर्शक कोई पहली बार नहीं देख रहे थे। फर्क बस उसको दर्शाने में रहा है। अनुराग ने घटनाओं से अधिक घटनाओं की वजहों पर फोकस किया है। फिल्म बिना वजह की लगातार पार्टियोंं में व्यस्त, कोकीन, शराब, सिगरेट के माहौल में जी रही युवा पीढ़ी की कमजोरी का ताना-बाना पेश करती है। फिल्म के यह पात्र छोटे से दबाव में स्थितियों और रिश्तों से पलायन करते दिखे हैं। यंगस्तिान के भीतर का खालीपन की समीक्षा शायद पहली बार हुई है। कलाकारों ने पात्रों के मुताबिक संतुलित अभिनय किया है।

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