गे और लेस्बियन हमारे समाज में अब तक हंसी, उपेक्षा या फुसफुसाहट भर का ही फुटेज बटोर पाए हैं...
हम या तो उन पर रहम करते हैं/ रिस्पेक्ट देते हैं या फिर उन्हें अजीब निगाहों से घूरकर खुद को उनसे दूर कर लेते हैं। हम उनके साथ सहज नहीं होतें। ये बर्ताव देश के मेट्रो सिटीज का है। टू टायर या थ्री टायर सिटी में ऐसे लोगों की अभी शिनाख्त ही नहीं हो पाई है। यदि वहां पर ये (गे पढ़ें) किसी प्रदर्शनी में रख दिए जाएं तो लोग उनको देखने के लिए आएंगे। उनके साथ सेल्फियां लेंगे और रिश्तेदारों को फारवार्ड करेंगे।
गे रिलेशनशिप पर बनी फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' समाज के इस नजरिए से खुद को बहुत दूर नहीं करती। वह इस रिलेशनशिप को मान्यता देती है लेकिन उनके साथ एक दूरी बनाकर। फिल्म जानती है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस रिश्ते को भले ही गैरकानूनी ना करार दिया हो लेकिन यह रिश्ता अभी भी समाज में गैर सामाजिक ही है।
हम कितना भी लिबरल क्यों ना बन लें लेकिन यह दृश्य स्वीकार्य नहीं कर पाएंगे कि कोई भाई अपनी बहन की शादी में घर आया हो और जयमाल स्टेज के ठीक सामने वह उसके जैसे दिखने वाले किसी पुरुष के साथ मिनटों तक लिपलॉक करता रहे। फिल्म में यह सीन एक कॉमिक सीन की तरह ट्रीट किया गया है। इस सीन का असर आप पर गहरा या गंभीर ना हो इसलिए इसके इर्द-गिर्द बहुत सारे फनी डायलॉग क्रिएट किए गए हैं। ताकि आप हंसते रहें और आपको यह लगे ही न कि ऐसा सच में हो सकता है। यह सीन वैसा ही है कि मानों कोई कड़वी दवा पिलाने के लिए उसे बहुत मीठे शर्बत में घोल दिया जाए। फिर उसकी फीलिंग शर्बत जैसी ही हो, दवा जैसी नहीं।
शुभ मंगल ज्यादा सावधान फिल्म की नियत अच्छी है। नियत अच्छी इसलिए कि क्योंकि यह खुद को एक मनोरंजक फिल्म बनाकर आपका मनोरंजन करना चाहती है। साथ में वह चाहती है कि गे या लेस्बियन रिलेशनशिप के साथ आप सहज हो जाएं। फिलहाल वह आपको सिर्फ सहज करना चाहती है, इस विषय पर लेक्चर या ज्ञान बिल्कुल नहीं देना चाहती। फिल्म का 95 फीसदी हिस्सा कॉमिक सीन और कॉमिक डायलॉग से भरा हुआ है। कई सारी उपकथाएं और पात्र फिल्म में इसलिए डाले गए हैं ताकि आप हर समय इन गे किरदार और उनकी मोहब्बत में ही न उलझे रहे। वह आपको ना तो 'अलीगढ़' जैसा टेंशन देना चाहती है और ना ही उनकी जिंदगी में आपको वैसे ही खुलकर घुसने देना चाहती है।
आयुष्मान खुराना की लीड रोल वाली इस फिल्म में लीड रोल दरअसल गजराज राव करते हैं और सेकेंड लीड नीना गुप्ता और मनुरिषी मिलकर। फिल्म उन्हीं की दुनिया को उन्हीं के नजरिए से देखने का प्रयास करती है। एक मां-बाप, चाचा-चाची का नजरिया। एक सामाजिक इंसान का समाज में रहने का नजरिया। फिल्म के पास ऐसे सीन गिनती के हैं जहां प्रेम में उलझे दोनों गे किरदार सहज रुप से आपस में अपनी बात कह रहे हों। वे या तो दर्शकों के लिए लंबे मोनोलॉग करते हैं या फिर समाज के दकियानूस होने की दुहाईयां देते हैं। बचे हुए समय में वह कुछ ऐसे स्टंट करते हैं ताकि आपका हंसी-ठट्टा होता रहे। फिल्म कई जगहों पर डिप्लोमैटिक तरीके से इस चीज को हैंडल करने का प्रयास करती है। वैसे ही जैसे अश्वस्थामा मर गया लेकिन हाथी..
फिल्म में सबने अच्छा अभिनय किया है। आयुष्मान खुराना बहुत अच्छे अभिनेता हैं। उनके पास मिडिल क्लास के लड़के की समस्याओं को दिखाने की एक लंबी फिल्मी रेंज है। वह सभी में खरे हैं। लेकिन इस फिल्म में वह और उनके मोनोलॉग कैरिकेचर पात्र जैसे लगने लगते हैं। सीन बुरे नहीं हैं लेकिन लगता है कि आयुष्मान ड्रीम गर्ल, बधाई हो या बाला के सेट से उठकर आए हैं और इस विषय पर आपको जागरुक करना चाहते हैं।
टीवीएफ फेम जीतेंद्र कुमार उर्फ जीतू भईया का फिल्मी डेब्यू अच्छा है। (गॉन केश जैसी विलुप्त फ़िल्म को माईनस करके चले तो) लेकिन जो लोग उन्हें टीवीएफ से जानते हैं वह पाएंगे कि जीतू भईया पिचर, कोटा फैक्ट्री में जो कर चुके हैं यह फिल्म उसके नीचे की चीज है। वो सालों पहले अर्जुन केजरीवाल का माइल स्टोन किरदार कर चुके हैं।
फिल्म की सबसे बड़ी खूबी उसकी लिखावट है। फिल्म में बहुत सारे वन लाइनर हैं। ज्यादातर मनु के हिस्से आए हैं। वह कमाल के हैंन। मनु सच में बेहद उम्दा अभिनेता हैं। 'ओए लकी लकी ओए' के बाद उन्हें इस फिल्म में जी भरकर काम मिला है। उनकी बीवी का किरदार कर रहीं Sunita Rajwar भी कमाल करती हैं। फिल्म के निर्देशक हितेश कैवल्य की पीठ इस बात के लिए भी बार-बार थपथपाई जानी चाहिए कि उन्होंने डबल मीनिंग की संभावना वाले इस विषय पर फिल्म को कहीं हल्की या छिछली नहीं किया।