Friday, September 23, 2011

दर्शकों का कोई दोष नहीं यदि वह फिल्म को नकार दें।




फिल्म समीक्षा: मौसम

अच्छे और लोकप्रिय निर्देशक के बीच फर्क कर पाना कई बार वाकई कठिन होता है। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई निर्देशक है जो एक या दो फिल्में बनाने के बाद चिर खामोश हो गए। वह खामोश इसलिए हुए क्योंकि वह लोकप्रिय नहीं हो पाए। इन अच्छे निर्देशकों को अपनी कला और सृजन से अगाध प्रेम होता है। यह निर्देशक बहुत जी-जान लगाकर फिल्में बनाते हैं और यह मानते हैं कि दर्शक भी उसी श्रृद्धा के साथ फिल्म देखेगा। पर ऐसा होता नहीं। फिल्म का पहली बार निर्देशन कर रहे पंकज कपूर भी इसी लोकप्रिय सिनेमा की चाहत की भेंट चढ़ गए। पंकज की यह फिल्म लगभग तीन घंटे की है। कई सारे फिल्मी किस्सागोई, प्रपंच और ८० के दशक के संयोग फॉमूर्ले को समेटे हुए यह फिल्म उतनी आकर्षक, भव्य और जादुई नहीं बन पाई जितनी कि इसके बारे में कल्पना की गई थी। फिल्म ठीक से न तो हंसाती है, न भावुक कराती है और न ही रुलाती है। यह एक औसत से फिल्म निकली जिससे अपेक्षाएं अधिक कर ली गईं। कई कलाकारों को देखकर लगता है कि उन्हें यदि ज्यादा लंबा और प्रभावी रोल मिले तो वह बेहतर कर सकते हैं। शाहिद और सोनम कपूर इस धारणा को तोड़ते हैं। पूरी फिल्म शाहिद के ही कंधों पर थी। शाहिद ने अच्छा अभिनय किया पर उतने से बात नहीं बनती। फिल्म का ताना-बाना १९९० से लेकर २००२ के बीच तक का है। बाबरी बिध्वंस, मुंबई ब्लास्ट, कारगिल युद्ध और गोधरा कांड जैसी घटनाएं फिल्म की कहानी का हिस्सा हैं। फिल्म में दिक्कत यह है कि इन सारी आपदाओं से एक ही परिवार लगातार जूझता हुआ दिखाया गया है। फिल्म का शुरुआती घंटा पंजाब के एक गांव का है। यह हिस्सा मनोरंजक होने की वजह से आकर्षक लगता है। नायिका का स्काटलैंड और नायक का एयरफोर्स में चले जाने के बाद फिल्म की कहानी घसटती हुई और अपने को दोहराती हुई चलती है। सात साल बाद नायक-नायिका स्काटलैंड में मिलते हैं। यह दृश्य फिल्म का सबसे अच्छा दृश्य होना चाहिए पर होता बहुत रूटीन में है। नायिका का पंजाब से स्काटलैंड, वहां से फिर पंजाब, फिर अहमदाबाद, फिर अमेरिका, फिर स्काटलैंड जाना एक तरह की पुनरावृति लगती है। मौसम वस्तुत: प्रेम कहानी है। इस प्रेमकहानी में देश की घटनाएं अवरोध बनकर आती हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स कमजोर और सतही है। पंकज कपूर की इस फिल्म को देखा जा सकता है। यदि दर्शक इसे खराब और बोर कहें तो यह उन्हें अकेले दोष देना गलत होगा।

2 comments:

  1. Nice review...but reader feels some missing through reading the blog...give some more approaching

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  2. अच्छा लगा इस समीक्षा को पढ़कर। नहीं तो हिंदी में समीक्षा और समालोचना का स्तर थामे रहना हरेक के बस की बात नहीं होती। सितारों के आभामंडल में खो जाने वाले लोग अक्सर निष्पक्ष नहीं रह पाते हैं, शायद इसीलिए हिंदी में सिनेमा पर लेखने मुंबई से दूर रहने वाले बेहतर तरीके से कर रहे हैं। मौसम की जो मूल कमजोरी है वो ये कि दर्शक नायक के साथ जैसे ही जुड़ रहा होता है निर्देशक उसे झटक कर दूर कर देता है। फिल्म में प्यार का आवेग तो है लेकिन संयोग और विरह का वेग वैसा नहीं है जो ऐसी कहानियों की अहम जरूरत होती है।

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