Friday, February 10, 2012

देखिए कितना रास आता है यह फिलासफिकल सिनेमा

फिल्म समीक्षा: एक मैं और एक तू



यह फिल्म उन दर्शकों को थोड़ी निराश करती है जिन्हें अग्निथ या अग्निथ जैसी लार्जर दैन लाइफ फिल्में पसंद आती हैं। यकीन भी नहीं आता कि अग्निथ और एक मैं और एक तू एक ही समय और एक ही निर्माता की बनाई हुई फिल्में हैं। यह फिल्म दरअसल फिलासफिकल सिनेमा देखने वाले दर्शकों को रास आ सकती है। यह उन्हीं मुट्ठी भर अरबन दर्शकों के लिए बनाई गई फिल्म है जिनके लिए वेक अप सिड, गुलाल, शोर इन द सिटी, प्यार का पंचनामा और जिंदगी न मिलेगी दोबारा जैसी फिल्में बनाई गई हैं। ऐसा सिनेमा जो हल्के-फुल्के मूड में कई जटिल विषयों के उत्तर छोडऩे के साथ कई प्रश्न भी खड़ा कर जाता है। दर्शक यदि सीखना चाहें तो ऐसी फिल्मों से सीख कर निकलते हैं। बॉलीवुड को यह बात अच्छी तरह से समझ आने लगी है कि किसी भी प्रेम का सबसे बेहतरीन अंत सिर्फ शादी नहीं होता। हर संबंध को शादी में लाकर खत्म कर देना वाला सिनेमा अब शादी से अलग भी संपूर्णता खोजना शुरू कर चुका है। शुभ संकेत। यह फिल्म इमरान खान और करीना कपूर के लिए इसलिए भी याद रखी जाएगी क्यों कि इन दोनों कलाकारों ने अपनी इमेज किरदार पर हावी नहीं होने दी। करीना कपूर हर कहीं से कहानी वाली रैयना ब्रेंगजा लगती हैं और इमरान राहुल कपूर। इस फिल्म की यूएसपी इसकी सिचुवेशनल कॉमेडी है। फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जो बगैर किसी संवाद के आपको हंसाते हैं। हंसने के साथ-साथ बगैर किसी हो-हल्ले और चीख चिल्लाहट के हम पात्रों के दुखों को समझने लगते हैं। न तो बिना मतलब के आंसू और न ही बिना मतलब की ओवरऐक्टिंग। परंपरागत सिनेमा देखने और उसके आदी हो चुके दर्शक संभव है कि इस पूरी फिल्म को ही नकार दें।

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