Saturday, September 15, 2012

लगता है कि सारे किरदार दार्जलिंग में ही रहे हैं, फिल्म से इन्हें कोई लेना-देना नहीं है

बर्फी फिल्म एक नशे की तरह दिमाग में चढ़ती जाती है। यह धीमा नशा इतना तेज है कि फिल्म देखते वक्त यह हमारे उन तर्कों को खारिज करता चलता है जिनके सहारे हम किसी फिल्म के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करते हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि हम फॉर्मूला फिल्म देखने के आदी हो चुके हैं । यह इस फिल्म की खूबसूरती है कि जहां यह फिल्म गैर फिल्मी या गैर पारंपरिक होती है वह अपने भव्यतम रूप में पहुंच जाती है। फिल्म में कहीं कोई तरतीब या क्लाइमेक्स जैसा कुछ नहीं। जो घटनाएं फिल्मों में सबसे बाद के लिए बचाकर रखी जाती हैं वह इस फिल्म में कहीं भी प्रयोग कर दी गईं। गूंगे-बहरे का किरदार न तो उसके लिए आपसे दया मांगता है और न ही अतिरिक्त ध्यान देने की अपील करता है। इस फिल्म को देखते-देखते हमें अचानक ही लगता है कि हमको इस छल-कपट की दुनिया हो हमेशा के लिए बाय बोल देना चाहिए। आशीष विद्यार्थी जहां-जहां फिल्म में आते हैं उनसे दर्शकों को ढेर सारे कोफ्त होती है। फिल्म में वही एक ऐसा चेहरा हैं जो बर्फी को फिल्म होने का एहसास कराते हैं। बाकी के किरदार ऐसे हैं जिन्हें देखकर लगता है कि वह दार्जलिंग में अभी भी रह रहे होंगे। फिल्म का मुख्य किरदार आपको अपने साथ पहले मिनट से कर लेता है। उसकी शरारतें, उसकी खुशी और उसकी दुखों में हम उसके साथ रहते हैं। बर्फी मोहब्बत की दिलचस्प कथा है।
रणवीर इस फिल्म अपना नाम बोलने के अलावा कुछ भी न बोलते दिखते हैं और न ही बोलने का प्रयास करते हैं। फिर भी दर्शकों को एक बार भी उनका गूंगापन अखरता नहीं है। फिल्म की एक बहुत बड़ी खूबसूरती उसका संगीत है। हर गाने जितना अच्छे से लिखा गया है उससे बढक़र उसे फिल्माया गया है। कुछ फिल्में इंडस्ट्री को १०० करोड़ भले ही न दे पाएं पर कुछ ऐसी चीजें देती हैं जिन पर हम १०० साल तक गर्व करते रहें। बर्फी ऐसी ही फिल्मों में से एक है। अनुराग शायद अब काइट की असफलता को अच्छे से भुला सकेंगे।

1 comment:

  1. फिल्म देखकर रविवार को सुबह दूरदर्शन पर आने वाले मोटू पतलू नाटक की याद आ गई। इसका असली नाम क्या था, यह तो आजतक नहीं पता चल पाया। मगर इसका अंदाज भी कुछ ऐसा ही था। हल्के भावनात्मकता और हास्य से सना संगीत और एक्शन इतने तेज और सीधे दिमाग में हंसी की पुडिय़ा घोलने वाले। यह नाटक चेरी के विज्ञापन में जोकर की तरह दो कलाकार करते थे। मेसेज तो खैर हर बात में हो यह जरूरी नहीं। अच्छी फिल्म।

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