Wednesday, July 6, 2011

डेल्ही बेली एहसास कराती है कि दर्शक परिपक्व हो गए हैं

फिल्म समीक्षा: डेल्ही बेली

खुशवंत सिंह कोई बहुत अच्छे अफसानानिगार या स्तम्भकार नहीं हैं। वह इसलिए अधिक चर्चित हुए हैं क्यों कि उन्होंने ऐसे विषयों पर लिखा है जिन पर दूसरे लेखक अश्लील कहकर नाक-भौं सिकोड़ते रहे हैं। आमिर खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के खुशवंत सिंह हो सकते हैं। हो सकता है कि इस फिल्म की सफलता के बाद एक साथ कई खुशवंत सिंह पैदा हो जाएं। आमिर की फिल्म डेल्ही बेली मुख्य धारा की पहली ऐसी हिंदी फिल्म है जिसमे खुलेपन के साथ सेक्स को प्रदर्शित किया गया है। सेक्स दृश्यों या संवाद को दिखाने में कहीं कोई कुंठा या असमंजस मन में नहीं दिखा है। आमिर किसी असमंजस के साथ इस फिल्म को लेकर आए भी नहीं थे। फिल्म बनाने से पहले ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि वह एक सेक्स कॉमेडी फिल्म बना रहे हैं, कहीं कोई धोखा देने का इरादा नहीं। मल्टीप्लेक्सों में टिकट भी सिर्फ एडल्ट को दिए जा रहे हैं। प्रदर्शन के बाद फिल्म चर्चित हो गई। अब मजा देखिए। चर्चा इस बात पर हो रही है कि फिल्म के दृश्य और संवाद अश्लील हैं। लोग कह रहे हैं फिल्म में गालियां हैं। कहा जा रहा है कि टट्टी-पेशाब के दृश्यों को अश्लील तरीके से चित्रित किया गया है। विडंबना। चर्चा इस बात पर नहीं हुई कि फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है। कुछ गुंडों के साथ हीरे की खोज में पगलाया गैंगस्टर और हीरों से छुटकारा पाने की जुगत में नायकों की टीम पहले भी कई फिल्मों में देखी जा चुकी है। डेल्ही बेली में उसी को एक बार फिर दोहराया गया है। फर्क सिर्फ इतना है कि इन दृश्यों से रिसते हास्य को सेक्स कॉमेडी से पगा दिया गया है। कहानी के स्तर पर कोई नयापन नहीं। चर्चा इस बात पर भी नहीं हुई कि आमिर अपने भानजे इमरान से सर्वश्रेष्ठ नहीं निकलवा पाएं। अच्छी अदाकारी और टाइमिंग वाले एक्टर विजय राज को बहुत अच्छे संवाद नहीं मिले हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत प्रभावकारी नहीं बन पाया। पर इन बुराईयों में फिल्म की अच्छाइयां भारी पड़ती हैं। अर्से बाद कोई ऐसी कॉमेडी फिल्म आई है कि जिसे रात में दो बजे या ट्रैफिक के रेड सिग्नल में याद करके हंसा जा सके। बिल्कुल नवीन और मौलिक दृश्य। फिल्म के गाने भी सुनने में मनोरंजक कम मनोरंजक नहीं हैं। ऐसा बहुत कम होता है। हां फिल्म में गालियों कुछ कम की जा सकती थीं। स्वाभाविक जिंदगी में तो हम और भी बहुत कुछ करते हैं जब उसे फालतू और रूटीन मानकर फिल्म में शामिल नहीं किया जाता तो गालियों को क्यों। अपनी कमियों और सीमाओं के बावजूद फिल्म आलोचना से अधिक तारीफ का हक रखती है। और हां हिंदी भाषा अपने बढ़ते वर्चस्व पर पीठ थपथपा सकती है। पहले सिर्फ अंग्रेजी में आ रही इस फिल्म को बाद मे हिंदी में डब किया गया और यह अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी के प्रिंटों में रिलीज की गई।

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