Saturday, November 26, 2011

शायद कलाकारों ने डेविड के साथ पुराने रिश्ते निभा दिए




फिल्म समीक्षा: देसी ब्वायज
रोहित धवन, डेविड धवन के बहुत ही होनहार बेटे हैं। ऐसे बेटे आजकल दुर्लभ हो चले हैं जो पिता की इच्छा को बिना प्रकट हुए ही जान लें। डेविड धवन पिछली कुछ समय से जैसी फिल्में बना रहे हैं रोहित ने अपनी पहली फिल्म में उसी परंपरा को आगे बढ़ाया है। उनकी पहली फिल्म देसी ब्वायज और डेविड की अंतिम फिल्म रासकल्स मनोरंजन और सार्थकता के स्टैंडर्ड पर एक जैसी उतरती है। वहां फूहड़ता संवादों में थी यहां विषय में है। फिल्म देखते समय सिर्फ एक बात समझ में नहीं आती कि अक्षय कुमार, जान अब्राहम और यहां तक कि दीपिका पादुकोन ने क्या देखकर इस फिल्म को साइन किया था। न विषय, न संवाद और न ही उसका ट्रीटमेंट। दीपिका पादुकोन का किरदार तो इतना रूटीन है कि कोई अनाड़ी दर्शक भी बता दे कि फिल्म के किस हिस्से में वह नायक से इठलाएगी, कब गुस्सा होंगी, कब रुठेंगी और कब मान जाएंगी। कुछ ऐसा जॉन अब्राहम के साथ भी है। इस मूलत: कॉमेडी फिल्म में अक्षय कुमार की वह टच व टाइमिंग नदारत रही जिसके लिए वह पहचाने जाते हैं। अक्षय अपने को रिपीट करके भी इतना मनोरंजन कर देते हैं कि फिल्म उबाऊ नहीं होती। इस फिल्म में अक्षय का चरित्र था तो महत्वपूर्ण पर उसे पेश बहुत साधारण तरीके से किया गया था। उनके हिस्से में कॉमेडी के कई अच्छे सीन डाले जा सकते थे पर उन्हें इमोशन में खपाने का निरर्थक प्रयास किया गया। संजय दत्त साहब को पता नहीं क्यो लगता है कि वह अभी भी खलनायक और साजन ही हैं जबकि दर्शकों के लिए उनको पर्दे पर झेलना किसी त्रासदी से कम नहीं। फिल्म विषय के स्तर पर सबसे ज्यादा निराश करती है।

1 comment:

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