Friday, January 13, 2012

सिर्फ अभिनय के बूते फिल्म ढोने की असफल कोशिश

फिल्म समीक्षा: चालीस चौरासी


यह फिल्म इंटरवल के बाद आपको अच्छी लगनी शुरू हो सकती है पर तब तक देर हो चुकी होती है। ह्रदय शेट्टी निर्देशित यह फिल्म पहली निगाह में आपको अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया या सुधीर मिश्रा टाइप की फिल्म लग सकती है। अच्छी बात यह है कि दबंग, बॉडीगार्ड और रॉ-वन जैसी फिल्मों के साथ चालीस चौरासी, यह साली जिंदगी, साहब बीवी और गैंगस्टर जैसी फिल्में भी बन रही हैं। पर ऐसी फिल्में बना भर लेने से ऐसी फिल्म बनाने का जोखिम लेने वालों की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती। इस फिल्म के साथ ऐसा ही हुआ है। चालीस चौरासी के निर्देशक ने चार ऐसे कलाकार तो चुने जो वाकई ऐक्टिंग कर लेते हैं। समस्या कहानी और पटकथा स्तर की है। दरअसल निर्देशक के पास जो कहानी थी वह ३० मिनट की थी। यह तीस मिनट क्लाइमेक्स के हैं और बेहतर हैं। फिल्म के बाकी बचे १ घंटे तीस मिनट इन अच्छे ३० मिनटों पर भी पानी फेर देते हैं। बिना अच्छी पटकथा के सिर्फ अभिनय के बूते कोई फिल्म नहीं चलाई जा सकती है यह बात तो निर्देशक को समझनी चाहिए थी। पर कर्मिश्यल फिल्मों से निकल कुछ अलग बनाने बनाने की खुशफहमी निर्देशक पर इतनी ज्यादा थी कि वह और कुछ सोच नहीं पाए।

2 comments:

  1. अच्छी मूवी के लिए लंबे अंतराल से तरस रहे हैं। हां इससे लग रहा था कि कुछ नयापन शीर्षक में दिख रहा है, तो हो सकता है कुछ अच्छी होगी। फिर भी पूरी मूवी सर यानी नसीर उद्दीन की एक्टिंग देखने लायक है। बहुत जबरदस्त। इसके अतिरिक्त जल्द उम्मीद करता हूं, कि रोहित आप साडा अड्डा की समीक्षा भी पेश करोगे। इसकी एक स्टोर लाइन आकर्षित कर रही है, कि आप जैसी जिंदगी चाहो जी सकते हो। अब जानना यह है कि कैसे????

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    1. इस बार आपकी फिल्म समीक्षा में जल्दबाजी है, तो संभव है कि उतनी अच्छी बात कह नहीं पाए। हालांकि मूवी है भी कुछ ऐसी ही कि कोई एक राय बन भी नहीं पाती। तो इसका रिव्यू कठिन है, मेरी सलाह है कि इसे दोबारा करने की कोशिश करें।

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