Friday, March 9, 2012

फिल्म तो दरअसल सुजॉय घोष की है।

फिल्म समीक्षा: कहानी


कुछ फिल्मों की नायक उनकी पटकथा होती है। पटकथा, नायक इसलिए होती है क्यों कि यह पटकथा किसी भी चरित्र के साथ भेदभाव नहीं करती। कहानी में यदि दर्शकों को विद्या बागची प्रभावित करती हैं तो उन्हें अडिय़ल खान और शर्मीले राना भी याद रहते हैं। ऐसे फिल्मी पात्रों को शिद्दत के साथ लिखा और फिल्माया जाता है। फिल्म कहानी का सबसे सशक्कत हिस्सा कसी हुई पटकथा ही है। कहानी कहने के सही अंदाज में। फिल्म के निर्देशक को इस बात का श्रेय देना चाहिए कि फिल्म के प्रमोशन के दौरान उत्साह में उनसे फिल्म की कहानी लीक नहीं हुई। फिल्म के अंतिम चंद लम्हों में फिल्म अचानक यू टर्न लेती है। यह यू-टर्न वाकई शॉकिंग है। कहानी तो वैसे है अलग अंदाज की फिल्म पर कहीं-कहीं यह भारत की सस्पेंस फिल्मों जैसी लगती है। फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी उसकी सिनेमेटोग्राफी है। कोलाकाता की लाइफ स्टाईल, तौर-तरीके, जीवन जीने का अंदाज सभी कुछ फिल्म की कहानी का हिस्सा है। कहानी दरअसल विद्या बालन की नहीं निर्देशक सुजॉय घोष की फिल्म है। विद्या तो अच्छा अभिनय करती ही हैं। पीपली लाइव में पत्रकार और पान सिंह तोमर में डकैत बने नवाजुद्दीन शिद्दकी दीपक डोबरियाल और प्रशांत नारायण जैसी संभावनाएं जगाते हैं।

1 comment:

  1. उत्तम। आज के दौर में बन रहीं फिल्मों में सबसे बड़ा अभाव पटकथा का ही है। आपकी इस बात को सुनकर इस फिल्म को देखने की इच्छा प्रबल हो गई। अतिशीघ्र इसके लिए बजट पास किया जाएगा।

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