Thursday, February 6, 2014

चलो, सब मिलकर जय हो के साथ 'सलमान परिवार' की तारीफ करते हैं


अरबाज खान के बाद जिस दिन सोहेल खान ने निर्देशक बनने का फैसला लिया था उसी दिन से मुझे सलीम खान की किस्मत से एक किस्म की ईष्या होनी शुरू हो गई थी। तीन लड़के और तीनों ही इतने होनहार।

सलमान खान जिस तरह का अर्थपूर्ण अभिनय करते हैं वह खुद में ऐतिहासिक है। कमर ‌हिलाना, धूम के चश्मे को पीठ पर टांगना, तौलियो को दोनों पैरों के बीच से निकालकर आगे पीछे करने जैसे दृश्य हिंदी सिनेमा के इतिहास में कोई भी बड़े से बड़ा फिल्मकार अब तक करना तो दूर सोच भी नहीं कर पाया। यह सलमान खान का ही प्रताप था कि उन्होंने दबंग, दबंग 2 और बॉडीगार्ड जैसी कालजयी फिल्में दीं। देश को सलमान की अविश्वसनीय अभिनय क्षमता पर हमेशा से ही पूरा विश्वास रहा है।

क्या हुआ जो सलमान का दूसरा भाई अरबाज फिल्मों में हीरो के रूप में उतना सफल नहीं हो पाया। लेकिन हैलो ब्रदर जैसी फिल्मों में उसने भी दिखाया कि उसके अंदर एक बहुत बड़ा अभिनेता छिपा हुआ है। खैर हिंदी फिल्‍मों के दर्शक हमेशा से ही अच्छे अभिनेताओं की परख नहीं कर पाए हैं। इसका खामियाजा अरबाज को भुगतना पड़ा। लेकिन कहते हैं न कि अंगारे में छिपी आग को उस पर चढ़ी राख दबा नहीं सकती। कुछ ऐसा ही अरबाज के साथ हुआ। जब उसने दबंग 2 फिल्म का निर्देशन किया तो अचानक व्यवसायिक और कला सिनेमा बनाने वाले प्रतिष्ठित निर्देशकों को लगा कि वह अभी तक कर क्या रहे थे। इतना सक्षम फिल्मकार उनके बीच में था जिसको उन्होंने कभी नोटिस ही नहीं किया।

तीसरे भाई के साथ भी हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने कम जुल्म नहीं किया। सोहेल खान नाम के इस भाई को एक तो निर्देशकों ने कम ‌फिल्में दीं। सलमान के कहने पर उसको फिल्में तो दी गईं लेकिन उस अच्छे अभिनेता से साजिशवस खराब अभिनय कराया गया। प्रतिभा खुद को भीड़ से हमेशा निकाल लेती है। सोहेल ने भी ऐसा ही किया। उसने हिंदी सिनेमा में सितारों की भीड़ से खुद को अलग कर लिया। उसकी राहें उसे कहीं और बुला रही थीं। सोहेल एक ऐसा सिनेमा बनाना चाहता था कि जिसे युगों-युगों याद किया जाए। वह 70 के पर्दे पर ऐसे सीन रचना चाहता था कि जिसे देखकर दर्शक बस रो पड़े और रोते हुए ही घर जाएं। इन्हीं सब सोच को मिलाकर उसने जय हो फिल्म रची।

और आ गई जय हो

जब हिंदी सिनेमा का 1000 साल का इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें श्रेष्ठ फिल्मों में जय हो का नंबर तीसरा या चौथा तो होगा ही। क्योंकि राम गोपाल वर्मा जैसे सक्षम फिल्मकार ने आग जैसी कालजयी फिल्म पहले ही बना दी थी। उस फिल्म तक को फिरोज खान की जानशीं भी नहीं पहुंच पाई। तुषार कपूर से जैसे वर्सेटाइल एक्टर की भी कुछ फिल्में भी हो सकता है कि जय हो को पिछाड़ दें। लेकिन मैने कहा न कि जय हो तीसरी या चौथी फिल्‍म तो बनेगी ही। जय हो के एक-एक फ्रेम में इतनी मेहनत की गई है कि उस एकमात्र फिल्‍म को देखकर निर्देशन की रुचि रखने वाले युवा निर्देशक बन सकते हैं। डेजी शाह की अभिनय क्षमता किसी भी महात्वाकांक्षी लड़की को यह दिखाएगी कि अभिनेत्री बनने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है।

आगे का पूरा महाकाब्य सलमान पर ही है

                                                                                                           जाइएगा नहीं जारी है

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