Friday, July 26, 2019

लैला फिल्‍म देखिए, कुछ डर हैं जो आपको बेहतर इंसान बना सकते हैं


कबीर सिंह जैसे मीनिंगलेस सिनेमा के बीच इन दिनों लैला जैसा मीनिंगफुल ऑप्शन भी आपके लिए मौजूद है। नेटफ्लिक्स पर ये वेब सीरीज भले ही सीक्रेट गेम्स या मिर्जापुर जैसी चर्चा न बटोर पा रही हो पर ये एक देखी जानी वाली फिल्म है।

फ़िल्म अघोषित रूप से एक पोलिटिकल टोन लिए हुए हैं। राइट विंगर्स को शायद फ़िल्म का विषय हाइपोथिटिकल लगने के साथ खुद को टारगेट करने वाला भी लगे। फ़िल्म एक डर पैदा करने में सफल होती है। ये डर राजनीति में धर्म के मिश्रण का है।

ये डर देश के बहुसंख्यक लोगों के श्रेष्ठ होने का है, ये डर ऊंची जातियों के खुद को ऊंचा मानने का है और ये डर अल्पसंख्यक को नीच और घटिया मानने का भी है। ये डर दिखता है कि यदि भारत लिंचिंग के हादसों को ऐसे ही सेलिब्रेट करता रहा, और राम का नाम पुजारी से ज्यादा हत्यारे लेने लगे तो ये आने वाले समय में ये देश 'आर्यावर्त' की शक्ल ले सकता है।

फ़िल्म में आर्यावर्त देश की कहानी कही गई है। जो आज से करीब 30 साल आगे की कहानी है। ये एक काल्पनिक देश की कहानी जरूर है लेकिन फ़िल्म पूरा संकेत देती है कि ये कहानी भारत देश ही है, जहां डायनामाईट लगाकर ताजमहल गिराया जा रहा है। जहाँ आर्ट, कल्चर, सिनेमा में पाबंदी की बात हो रही हैं, क्योंकि ये चीजें टाइम और दिमाग दोनों खराब करती हैं और जहां 'घर वापसी' कराई जा रही है।

फ़िल्म में सभी कलाकारों की अदाकारी उम्दा है। लीड रोल में हुमा कुरैशी की अब तक के अपने करियर में सर्वश्रेष्ठ हैं। दीपा मेहता ने पहले दो एपिसोड डायरेक्ट किए हैं। निश्चित ही ये फ़िल्म की जान है। फ़िल्म देखी जानी चाहिए।

No comments:

Post a Comment