Friday, December 9, 2011

गोवा पहुंचते ही बहक गई फिल्म



फिल्म समीक्षा: लेडीज वर्सेज रिकी बहल

यश चोपड़ा बैनर की यह फिल्म न ही रणवीर सिंह की है और न ही अनुष्का की। यह फिल्म सिर्फ परिणिती चोपड़ा की है। ऑडी से निकलते वक्त यदि दर्शकों को फिल्म में कुछ याद रह जाता है तो वह है हरियाणिवी अंदाज में चुटीले डॉयलॉग बोलती डिंपल चड्ढा। प्रियंका चोपड़ा की इस चचेरी बहन का शरीर हिंदी फिल्म की पारंपरिक नायिका जैसा भले ही नहीं है पर बाकी सबकुछ उचित अनुपात में है। इस किरदार का वजन फिल्म की नायिका से भी ज्यादा है। पता नहीं ऐसा जानबूझ कर हुआ है या अनजाने में। यह फिल्म दो बातें और साफ करती हैं। पहली कि रणवीर सिंह में अकेले किसी फिल्म को खींचने का माद्दा नहीं है और दूसरी यह कि यह गलत कहा जाता रहा है कि उनकी और अनुष्का की जोड़ी पर्दे पर अच्छी लगती है। फिल्म में जहां-जहां अनुष्का और रणवीर के रोमांटिक सीन या संवाद हैं यह फिल्म बैंड बाजा बारात लगने लगती है। रणवीर सिंह के हिस्से में संवाद नहीं हैं। उन्हें शायद चुप रहने के लिए कहा गया था। संवाद अनुष्का के हिस्से में भी नहीं हैं पर उन्हें कम से कम एटीट्यूट दे दिया गया है। ऐसा एटीट्यूड जो फिल्म खत्म होने के दस मिनट पहले खत्म होने लगता है। मनोरंजन की दृष्टि से फिल्म बुरी नहीं है। इंटरवल तक फिल्म न सिर्फ मनोरंजन करती है बल्कि हंसाती भी है। इंटरवल के बाद फिल्म जहां गोवा पहुंचाती है वहां यह फिल्म बर्बाद होती है। इधर कई ऐसी फिल्में आईं हैं जो गोवा पहुंचते ही बर्बाद हो गईं। अनुष्का का रणवीर से सच्चा प्यार होने वाला प्लाट सबसे कमजोर है। चूंकि दर्शकों को पता था कि नायक भले ही चोरी-चकारी कर रहा हो पर अंत तक हिंदी फिल्मों का हीरो बन जाएगा। दर्शकों को निराश नहीं किया गया अंत जितना पारंपरिक हो सकता था उतना रहा। अदिति शर्मा सुंदर हैं। उन्हें बार-बार सभ्यता में डूबी उस लडक़ी का किरदार दे दिया जाता है जो सलवार शूट भी आधी बांह का नहीं पहन सकती। पहले मौसम अब रिकी बहल। फिल्म के गाने भी एक और अभिनेत्री दीपानिता शर्मा की तरह सिर्फ लाउड रहे।

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