Friday, August 3, 2012

सन्नी लियोन एक चारा थीं, जिससे दर्शकरूपी मछली पकड़ी गई।

भीगकर मल्टीप्लेक्स पहुंचे दर्शक टिकट लेते वक्त से ही सन्नी लियोन का अखंड जाप कर रहे थे। उनकी जुबान में न फिल्म का नाम था, न महेश या पूजा भट्ट थे और न ही फिल्म के नायकद्वय। कुछ दर्शक ऑडी गेट के ठीक बाहर ऐसे उत्तेजित थे कि मानो गेट खुलते ही सन्नी लियोन अपनी ख्याति के अनुरूप उन्हें बिल्कुल निवस्त्र साक्षात मिल जाएंगी। उत्साह इतना चरम पर था कि फिल्म के पहले आने वाले फिल्मों के ट्रेलर पर भी वह सन्नी लियोन को नंगे देखे जाने वाली फ्रीवेंक्सी से ही सीटियां और तालियां बजाए जा रहे थे। फिल्म के कुछ शुरुआती संवाद इसलिए नहीं सुने जा सके क्योंकि दर्शकों को सन्नी लियोन दिखनी शुरू हो गई थीं और दर्शक उत्सहित थे।
यह भट्ट कैंप की कामयाबी थी जो इन दर्शकों को बारिश होने के बावजूद मल्टीप्लेक्स तक खींच लाई थी। यह कामयाबी उस प्रचार की थी जिसमें इस फिल्म को भारत की सबसे अश्लील फिल्म कहकर प्रचारित किया गया था। दर्शक इसे सही इसलिए भी मान रहे थे क्योंकि फिल्म की नायिका पोर्न फिल्मों की नायिका रही हैं। लगभग सवा दो घंटे की इस फिल्म को दर्शकों ने सिर्फ इस उत्साह में एक घंंटे पूरे मनोयोग से देखी कि सन्नी अब कपड़े उतारने वाली हैं। फिल्म का ट्रैक एकबार गंभीर हो जाने के बाद दर्शकों को अचानक लगा कि वह बुरी तरह से ठगे गए। उन्हें अब तक फिल्म में ऐसा कोई सीन नहीं मिला था जिसे वह दर्जनों फिल्मों में पहले न देख चुके हों। उन्हें लगा कि सन्नी लियोन एक चारा थी जिससे दर्शक रूपी मछली पकड़ी गई।
जिस लियोन को वह न्यूड होने की कल्पना मन में लेकर आए थे वह उस समय हिंदी के पारंपरिक घिसे-पिटे संवादों का पाठ कर रहीं थीं या फिर सांसों को उपर-नीचे। यदि इस बीच यदि कुछ अच्छा भी बीत रहा था तो वह उसके खिल्ली उड़ा रहे थे। पूरी फिल्म जितनी खटिया तरीके से लिखी गई उसका निर्देशन भी उतने ही घटिया तरीके से हुआ। एक निर्देशक के रूप में पूजा की और कलाकार के रूप में अरुणोदय की सबसे खराब फिल्म।

1 comment:

  1. समीक्षा से अपेक्षा हमेशा फिल्म के भीतरी अवयवों पर कमेंट की होती है। आपके साथ जब मैं फिल्म देख रहा था, तब मेरे दिमाग में 6 बार ख्याल आया कि आपसे फिल्म के बारे में अभी कोई राय न ली जाए, चूंकि शाम को जब समीक्षा पढ़ूंगा तो मुझे भी पता चलना चाहिए कि इसी फिल्म को मैं किस नजरिए से देख रहा था और उसी कंटेंट को आप किन फिल्मी कोरों से दिमाग में सोख रहे थे। किंतु शाम को समीक्षा देखकर निराश हुआ, यह ठीक इसी फिल्म की तरह निकली, जिसमें फिल्म समीक्षा के रूप में असल में फिल्म की रिपोर्टिंग है।

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