Friday, August 24, 2012

लगा कि पारसी बचाओ एसोसिएशन की फिल्म चल रही है और सारे पारसी जमकर ओवरएक्टिंग कर रहे हैं।

इसे कुछ इस तरह से समझिए। टेलीफोन बनाने वाले ग्राहम बेल और बिजली बल्ब बनाने वाले थामस एडीसन कहें कि मैं एक प्रयोग करूंगा। बरसात की बूंदे जब धरती पर टकराएंगी तो उनके घर्षण से जो ऊर्जा निकलेगी उससे मैं बिजली बनाऊंगा। लोग उनकी बात माने या न माने पर हवा में उड़ाकर खारिज नहीं करेंगे। चूंकि यह दोनों वैज्ञानिक हैं और बिजली बनाने के इस प्रयोग के पहले वह दुनिया को कुछ दे चुके हैं। बिजली तो खैर नहीं बनेगी पर ऐसी प्रयोगों से एतबार उठेगा। बिजली बनाने की कुछ ऐसी ही कोशिश संजय लीला भंसाली, फराह खान और बोमेन ईरानी ने की है। शीरी फरहाद फिल्म न तो संजय के जीवन का माइल स्टोन थी, न फराह के और न ही बोमेने के। इस कोशिश का निष्कर्श कैसा भी होता उनके करियर पर इसका कोई फर्क नहीं पडऩे वाला था। फराह नियमित ऐक्टिंग नहीं करने लगतीं, उनकी जोड़ी बोमेन के साथ रिपीट नहीं होने लगती, मेच्योर कलाकरों को लेकर प्रेम कहानियां बननी नहीं शुरू हो जातीं, संजय के नाम की स्तुती नहीं गायी जाने लगती। जब इसके हिट होने से कुछ बदलने वाला नहीं था तो ऑफबीट के नाम पर किसी भी व्यक्ति ने फिल्म में अपना बहुत दिमाग नहीं लगाया। सबने उतना ही किया जितना की वह प्रोफेशनली अभ्यस्त हो गए हैं।
एक बहुत ही स्तरीय कहानी को घटिया पटकथा में तब्दील कर दिया गया। बोमेन जैसे दिग्गज कलाकार ने एक औसत से परफार्सेंस दे दी। सालों कैमरे के पीछे रहने वाली फराह के लिए ऐक्टिंग थोड़ा फन हो गया। बेला सहगल के नाम पर एक फिल्म का निर्देशन दर्ज हो गया और संजय लीला भंसाली भंसाली ने कुछ पैसे कमाने के साथ अपने निर्माण में बनने वाली फिल्मों की संख्य बढ़ा ली। नुकसान सिर्फ उन दर्शकों का हुआ जो इस ऑफबीट फिल्म देखने के लिए पूरी संजीदगी से आए थे। है। फिल्म बनाने की ऐसी घटिया कोशिशें समांतर सिनेमा के उस ढंाचे पर चोट पहुंचाती हैं जिस पर धीमे-धीमे आम दर्शकों का विश्वास जमने लगा है। संजय लीला भंसाली की फिल्मों में पारसी परिवेश के दृश्यों की झलक मिलती रहती है। इस बार उन्होंने हद की है। अन्य फिल्मों के सारे जाने-पहचाने पारसी चेहरे इस फिल्म में एक जगह आ गए हैं। पारसी शायद लाऊड तरीके से बोलते ही हैं या कोई और वजह, हर किरदार ने जमकर ओवरऐक्टिंग की है। एक्टिंग के साथ बोलने की टोन में भी, कपड़ों में, शौक और रहन सहन में भी कहीं-कहीं तो यह फिल्म अखिल भारतीय पारसी बचाओ एसोसिएशन की फिल्म लगने लगती है। उसको श्रृद्धांजलि देती हुई।

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