Tuesday, March 24, 2020

शी स्‍त्री की देह के मनोविज्ञान को तो कह लेती है, सिनेमाई मनोरंजन में चूक जाती है...



इम्तियाज अली की डेब्यू वेब सीरिज 'शी' को ड्रग्स नेक्सस पर बनी फिल्म समझना उसके साथ ज्यातीय होगी। शी स्‍त्री देह के मनोविज्ञान को कहने की सिनेमाई कोशिश है। देह को लेकर स्‍त्री की न्यूनताएं, उसकी कुंठाएं, दूसरी देह से चलने वाली उसकी अनवरत तुलनाएं, निगाहों में तवज्जों पाने की छटपटाहट और पुरुष के नजरिए से स्‍त्री द्वारा खुद को देखे जाने जैसी बातों को यह फिल्म एक कहानी के जरिए गढ़ने की कोशिश करती है। शी की कमजोरी यह है कि जिस कहानी के जरिए इन चीजों को कहने के लिए चुना गया है वह कहानी उतनी मजबूत और कन्वेनसिंग नहीं लगती जितनी कि उसे होना चाहिए था। इसलिए ग्रांड टोटल में यह फिल्म कमजोर पड़ जाती है। 

 शी को इम्तियाज अली ने क्रिएट किया है। यानी उसे सोचने और लिखने का जिम्मा उनका है। इसे निर्देशित आरिफ अली और अविनाश दास ने मिलकर किया। आरिफ, इम्तियाज के छोटे भाई हैं और 'लेकर हम दीवाना दिल' फिल्म को निर्देशित कर चुके हैं। अविनाश से आप 'अनारकली' के मार्फत परिचित हैं। इन दोनों निर्देशकों की काम को लेकर अपनी कोई वाहिद पहचान नहीं बन पाई है। इसलिए यह क्लासीफाइड कर पाना मुश्किल होता है कि किन दृश्यों में किसका कंट्रीब्यूशन है, लेकिन फिल्म का ओवरऑल टोन यह साबित करता है कि यह दर्शन को समझने वाले इम्तियाज का सिनेमा है। 

 फिल्म मुख्यतः दो ट्रैक पर चल रही होती है। पहला ट्रैक मुंबई पुलिस के द्वारा ड्रग कारोबार की चेन को खत्म करने की कहानी है। दूसरी कहानी मुंबई पुलिस की कॉन्सटेबल भूमिका परदेसी की है। भूमिका उर्फ भूमि ही इन दोनों कहानी में ब्रिज तरह काम करती हैं। चूंकि हम इम्तियाज अली की कहानी कहने के अंदाज से जरुरत भर का परिचित हैं इसलिए यह देखकर समझ आ जाता है कि उनका फोकस दरअसल भूमि को एक कॉन्सटेबल नहीं बल्कि उसके स्‍त्री को दिखाने की प्रक्रिया में है। उसका पति उससे इसलिए अलग हो जाता है क्योंकि वह बिस्तर पर 'ठंडी' है। उसकी छोटी बहन उसी तुलना में 'गर्म' है। गर्म और ठंडे होने की यह जिक्र फिल्म में दसियों बार आते हैं। भूमि का पति अपनी साली के साथ एक बार सोना चाहता है। इसके बदले वह उसके लिए कुछ भी कर सकता है। भूमि के साथी पुलिस वाले भी उसे लड़की नहीं मानते। वह उनके सामने वैसी ही‌ द्विअर्थी बातें करते हैं जैसा मर्द मर्द के सामने ही करते हैं या कर सकते हैं। 


नारकोटिक्स डिपार्टमेंट का एक अफसर भूमि में 'कुछ' देखता है। उसी 'कुछ' की वजह से वह उसे एक ड्रग पैडलर सस्या के सामने कॉल गर्ल बनाकर पेश करता है। वह पकड़ा जाता है। इसके बाद भूमि की जिंदगी में एक स्‍त्री के रुप में बदलाव आते हैं। वह आगे भी कॉलगर्ल के रुप में मुखबिरी करती है। शी फिल्म को देखने का इम्तियाज अली का जो तरीका है उसे ही पकड़कर आप भी चलेंगे तो आपको यह फिल्म सही दिशा में लेकर जाएगी। 

हनीट्रैप के एक सीन में जब भूमि, सस्या के जिस्म से चिपकी होती है उस समय उसके शरीर में एक हलचल होती है। पता नहीं क्या होता है कि कुछ मिनटों पहले सस्या की बाहों से निकलने के लिए छटपटा रही भूमि उसके शरीर के खास हिस्से से अपने जिस्म को रगड़ने लगती है। एक अनचाहा संबंध, कुछ सेंकेड के लिए सही सेक्स प्राप्ति का एक जरिया बनकर आता है। चंद सेकेंड का यह सीन दरअसल पूरी फिल्म की आत्मा है। एक स्‍त्री की सेंसुअल फैटेंसी को सिनेमा में इसके पहले इस तरह से नहीं कहा गया। कम से कम मेरे देखे गए हिंदी सिनेमा में नहीं। 

 राजेंद्र यादव के एक लघु उपन्यास मंत्रवुद्वि की नायिका निम्मी को जब रात के अंधेरे में किसी दूसरे के धोखे में चूम लिया जाता है, तो उस चूमे जाने की प्रतिक्रिया में एकसाथ उतपन्न हुए सुख और ग्लानि को राजेंद्र बहुत खूबसूरती से बयां करते हैं। औसत से नीचे चेहरे मोहरे और कद काठी वाली निम्मी को चूमा जाना उसके लिए कभी ना पूरी होने वाली सेक्स फैटेंसी था। वह नहीं चाहती है कि चूमने वाले यह बात जान पाए कि स्याह रात में चूमे गए वह खुरदरे ओंठ निम्‍मी के थे। अपने शरीर की न्यूनताओं को लेकर यही अपराध बोध बहुत देर तक भूमि का पीछा करते रहते हैं।  

सस्या द्वारा लगातार भूमि को ‌लगातार दिए जाने वाले कॉम्लीमेंट उसके अंदर एक अजीब से पर्सनाल्टी पैदा करते हैं। शी के वह सीन गौर से देखने वाले हैं जब भूमि रेस्टोरेंट के वेटर, होटल के रिसेप्‍शन में बैठे लड़के से यह पूछने का प्रयास करती है कि वह उसे सेक्सुअली कितनी अच्छी लग रही है। ढीली नाईटी को आईने के सामने खड़े होकर वक्षों के सामने कस लेना और उस कसावट की खुशी को महसूस करने की प्रक्रिया को दिखाना शी की कई सफलताओं में से एक है। इस सीरिज के आखिरी ऐपीसोड के आखिरी लम्हों में जब बिस्तर पर ठंडी साबित की गई भूमि ड्रग माफिया नायक को उलटकर खुद उसके ऊपर आकर सेक्स का कंट्रोल अपने हाथों में लेती है तो कमरे का आदमकद आईना उसे बड़े दिलचस्प नजरिये से दिखाता है। 

सेक्स फैटैंसी के इन मनोवैज्ञानिक बदलावों के अलावा शी के पास कहने के लिए कुछ नहीं है। मुंबई के ड्रग वर्ल्ड को इतनी बार इतने अलग-अलग तरीके से दिखाया जा चुका है कि अब उसमें कुछ बचा ही नहीं। यदि कुछ बचा भी हो तो भी दर्शकों की दिलचस्पी नहीं बची है। शी देखने वालों की दिलचस्पी इस बात में बन ही नहीं पाती कि वह इस बात का इंतजार करें कि ड्रग माफिया नायक पकड़ा जाता है या नहीं? ना ही इस बात में उन्हें कोई रस आता है कि नायक और सस्या के बीच दरअसल संबंध कैसे थें। फिल्म सिर्फ भूमि के जिस्म को लेकर बदलावों में दिलचस्पी जगा पाती है। 

इसमें दिक्कत यह भी है कि यदि आप भूमि के जिस्म के मनोविज्ञान को ठहरकर नहीं सोचेंगे तो यह आपको अश्लील भी लग सकता है। रिश्तों का ताना-बाना बचकाना। यदि यह फिल्म यदि असफल होती है तो बहुत संभावना है कि इसे अनैतिक और अश्लील भी साबित कर दिया जाए। फिल्म में अभिनय का पहलू मजबूत है। सबसे बेहतरीन अभियन भूमि का किरदार निभाने वाली अदित‌ि पोहनकर ने किया है। एक थकी हुई बोरिंग लड़की से लेकर ड्रम माफिया को एक खुली और नंगी डील ऑफर करने की इस पूरी यात्रा को अदिति ने खूबसूरती से निर्वाह किया है। सस्या के रोल में विजय वर्मा कमाल लगते हैं। साथ ही कमाल लगता है कि उनका हैदराबादी जुबान का लहजा। अभिनय में सबसे कमजोर कड़ी नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के अफसर की भूमिका निभाने वाले विश्वास किनी है। विश्वास को हम शार्ट फिल्‍म जूती के अलावा वीरे द वीडिंग में सोनम कपूर से फ्लर्ट करते एक गंवार आशिक के रुप में याद कर सकते हैं। 

शी फिल्म को देखा जाना चाहिए। लेकिन इसे यदि एक थ्रिलर वेब सीरिज की तरह देखेंगे तो निराश हाथ लगेगी। यदि स्‍त्री के शारीरिक मनोविज्ञान के नजरिए से आंकेंगे तो यकीनन यह फिल्म बुरी नहीं लगेगी। मैं इसे इम्तियाज का अच्छा काम मानूंगा। भले ही इस बार उनका जॉनर बदल गया हो लेकिन दर्शन के मामले में वह वैसे ही मजबूत हैं...

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