Tuesday, June 26, 2012

हम गैंगवार की फिल्म देख रहे हैं ऐसा सिर्फ कुछ देर लगता है, बाकी समय एक ऐसी दुनिया है जो बुरी होते हुए भी बहुत लुभावनी है

अनुराग कश्यप इस फिल्म को ढाई घंटे की एक फिल्म में खत्म कर सकते थे। किसी भी माफिया गैंगवार में इतनी तेज, फ्रीक्वेंट और महत्वपूर्ण घटनाएं नहीं होती हैं कि उन पर दो फिल्में बनानी पड़ें। वासेपुर पूरी तरह से गैंगवार की फिल्म नहीं है। शुरुआती चंद मिनट छोडक़र कहीं भी बिना वजह मारपीट नहीं है। वासेपुर दरअसल अनुराग की ऑब्जर्वेेशन का डीटेल है। उस ऑब्जर्वेशन में उस समय का समाज है, राजनीति है, जीवन है, लाइफ स्टाईल के साथ उसी दौर की नफरत और मोहब्बत भी है। फिल्म में दर्जनों ऐसे दृश्य हैं जिन्हें देखकर लगता है उस दौर को दिखाने के लिए जमकर होमवर्क और रिसर्च किया है। फिल्म शुरू होने के आधे घंटे तक तो कोयला, बदला, माफिया जैसी बातें करती है लेकिन आधे घंटे के बाद एक अलग ही दुनिया है। वह दुनिया बुरी होते हुए भी बड़ी जादुई और सम्मोहक लगती है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी पात्रों की रचना और उनकी स्थापना है। हर पात्र अपनी जगह पर ऐसा फिट है कि लगता हैं कि इससे बेहतर कोई और हो ही नहीं सकता। दबंग और बॉडीगार्ड फिल्मों से उलट इस फिल्म का कोई भी किरदार मंद या अल्पबुद्धि नहीं है। लगभग तीन घंटे की यह फिल्म अपने अंदर दर्जनों भव्य और ऐतिहासिक दृश्य समेटे हुए है। फिल्म वहां भव्य हो जाती है जहां मनोज बाजपेई अपनी पत्नी से सुहागरात पर पानी के लिए पूछने के बाद अपने जीवन के एकमात्र लक्ष्य को साक्षा करते हैं, यह फिल्म वहां भव्य होती है जहां वह रंडीखाने की एक रंडी को नगमा समझ लेने का तर्क देते हैं और कहते हैं कि शराब के नशे में उन्होंने रंडीखाने को घर समझ लिया है। फिल्म वहां बहुत बड़ी बन जाती है जब मनोज बाजपेई नीली हवाई चप्पल, लुंगी पहन कर दातून चबाते हुए दुर्गा से रोमांस करते हैं। धीमे से चप्पल निकालना और साथी का इसे समझ कर दौड़ लगा देना। नगमा का फ्रिज और वैक्यूम क्लीनर से सफाई करने जैसे दृश्यों की खूबसूरती यह है कि वह बहुत मामूली हैं। वासेपुर अपने अभिनय के लिए जानी जाएगी। मनोज बाजपेई के अलावा दूसरे कलाकारो ने भी कमाल का अभिनय किया है। तिंगमाशु धूलिया की फिल्म शर्गिद में अनुराग कश्यप ने एक रोल किया था, तिंग्माशु ने खूबसूरती के साथ हिसाब बराबर कर दिया है। पीयूष को कोई और भूमिका मिलनी चाहिए थी। फिल्म का संगीत भी फिल्म की तरह भव्य है। हर गीत एक अलग मिजाज का। गानों की रेंज देखिए, एक बगल में चांद होगा, वुमनिया, हंटर, बिहार के लाला सब अलग धरातल पर खड़े हैं जो फिल्म का हिस्सा लगते हैं।

1 comment:

  1. Gangs of wassaypore is not meant by a celluloid strip, while it is a bunch of sequel life occurrences. When i back from the multiplex a friend asked me to about the movie, i said it is nothing except whatever you observe through the life. just an example let you start your journey from Raipur to Bhopal and whatever you observe and make it convert into a film, that meant to say The gangs of wassaypore. Really an marvelous experience in the alley of infinite creation.

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