Saturday, February 22, 2020

किसी बरसती दोपहर में कमरे को खुद को बंद करके देख डालिए हाउस अरेस्ट

नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म 'हाउस अरेस्ट' को समझने से पहले इन दो बातों को समझ लीजिए...

पहलीः जापान की पूरी आबादी के लगभग दो प्रतिशत लोग 'हीकीकोमोरी' नाम के सिंड्रोम से जूझ रहे हैं। इस सिंड्रोम में व्यक्ति खुद को सोशली डिस्कनेक्ट कर लेता है, वह घर से बाहर निकलता ही नहीं है। वह अपने घर या कमरे में अकेले रहता है। कई-कई महीने। वह सिर्फ इंटरनेट और फोन के जरिए ही लोगों से जुड़ा होता है। जापान के अलावा अमेरिका, इटली, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। 

दूसरीः हाउस अरेस्ट फिल्म का नायक दिल्ली के एक फ्लैट से पिछले 9 महीनों से बाहर नहीं निकला है। फिल्म के खत्म होने के कुछ मिनट पहले हम जान पाते हैं कि उसकी बीवी उसके बॉस के साथ भाग गई है। उसके शब्दों में 'शादी के बाद वह बीवी को अच्छी लाइफ देने के लिए दिन रात काम करता है। ऑफिस में वह बॉस का काम भी करता है, कुछ समय बाद बॉस उसके घर पर उसका काम करने लगता है' ये भागने के कुछ दिन पहले की उसकी और उसके बॉस की रुटीन थी। घर में कैद इस आदमी का इंटरव्यू करने के लिए एक फ्रीलांस जर्नलिस्ट उसके घर आती है। वह जापान में रह चुकी है तो उसे ये केस हीकीकोमोरी का लगता है, उसके लिए ये एक स्टोरी होती है।

 इन दोनों बातों को जानने के बाद आपके मन में जो एक सीरियस किस्म का प्लाट बन रहा है, दरअसल फिल्म वैसी है नहीं। ये अल्ट्रा अर्बन माहौल में रची एक लाइट हार्टेड इमोशनल फिल्‍म जैसी है। जिसकी पिच और टोन कॉमिक है। 100 मिनट से ऊपर की यह फिल्म थिएटर के अंदाज में एक फ्लैट में शूट की गई है। यहां मुख्य रुप से दो किरदार हैं और कुछ और किरदार आते जाते रहते हैं।

 इस फिल्म की खूबसूरती ये है कि कुछ मिनटों के बाद हम फिल्म के मुख्य किरदारों करन और शायरा के बीच बन रहे इमोनशल बॉडिंग का हिस्सा बन जाते हैं। शायरा  एक नहीं कई सारे अफेयर्स से गुजर चुकी है। सेक्स या वन टाइम रिलेशनशिप उसके लिए टैबू नहीं है, फिर भी करन और शायरा का करीब आना बेहद नेचुरल और जरूरी लगता है। एक ऑडियंश के रुप में दर्शक को लगने लगता है कि अब इनको क्लोज हो जाना चाहिए। चाहे तो बॉलकनी में पौधों को पानी देते वक्त, वीडियो गेम खेलते या एक ही बाउल से कुछ खाते हुए। हर दफा लगता है कि होना चाहिए। 'ये होने चाहिए' की फीलिंग स्वाभाविक क्यों लगती है यही इस फिल्म की स्ट्रेंथ है।

फिल्म का सबसे दिलचस्प पहलू करन का दोस्त जेडी है। जेडी का किरदार जिम शरभ ने किया है। जिम को आप चाहें तो पदमावत के अलाउद्नीन खिलजी के करीबी के रूप में याद कर सकते हैं या मेड इन हैवेन वेब सीरिज के बिजनेसमैन आदिल के रूप में। कमरे में बंद करन का किरदार अली जफर ने किया है। उस जर्नलिस्ट के रोल में श्रेया पिलगांवकर हैं। श्रेया को आप इस तरह से समझिए कि मिर्जापुर वेब सीरिज में वह गुड्डू पंडित की प्रेमिका का किरदार कर चुकी हैं। और गुड्डू पंडित यानी फिर से अली जफर...

 जेडी ने ही उस जर्नलिस्ट को करन के घर भेजा हुआ है। बीवी के भाग जाने की तरह ही दर्शकों को ये भी आखिरी में ही पता चलता है कि शायरा जेडी की एक्स है। जेडी अपने आप को प्लेयर मानता है। वह मानता है कि पति के साथ 'रोज-रोज के दाल चावल' जैसी बोरिंग रिलेशनशिप से उकताई लड़कियां उसके पास कुछ थ्रिल खोजने के लिए आती हैं। वह पल जिनमें शायरा और करन के बीच में एक रिलेशन डेवलप हो रही होती हैं उन्हीं पलों में जेडी शायरा को फोन करके उसे थ्री सम के लिए इनवाइट करता है। इस थ्री सम में 'थ्री' शायरा की एक दोस्त को बनना है। जाहिर है वह भी जेडी की एक्स रह चुकी है। वह उसी के जरिए शायरा से मिला है।

फिल्म का खूबसूरत पक्ष इन्हीं रिलेशनशिप को बगैर पैनिक हुए दिखाना है। ये फिल्म कहीं भी मॉरल, इथक्सि या मॉरल पुलिसिंग के लोड में नहीं पड़ती है। वह सहजता के साथ बनने वाले रिश्तों में असहज होना जानती है और यह भी जानती है कि असहजता को झेलते हुए कब तक सहज रहा जा सकता है।

फिल्म में कॉमेडी का भी एक साइड प्लाट भी डाला गया है। शायद फिल्म की स्पीड को बनाए रखने के लिए। उसकी चर्चा इसलिए जरूरी नहीं कि वह दर्जनों बार किसी फिल्म में घुमा-फिराकर यूज हो चुका है।

हाउस अरेस्ट कोई चमत्कारिक फिल्म नहीं है। इसकी ना तो चर्चा होगी ना ही इसे कहीं कोट किया जाएगा, लेकिन मेरे लिए यह फिल्म एक जरुरी फिल्म है। मैं कह सकूंगा कि जिस शुक्रवार थिएटर में 'मरजावां' रिलीज हुई थी उसी शुक्रवार एक ऐसी फिल्म भी आई थी, जिसका बजट शायद कुछ लाख ही रहा हो। और जिसके पास रिलेशनशिप को लेकर दो चार नई फिलॉसफी थीं.. और जिसे घर में खुद को बंद करके देखा जा सकता है...

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