Saturday, February 22, 2020

ये फिल्म उनके लिए है जिन्हें पूजा और सिमरन की फोन कॉल बहुत आती हैं...



हैलो सर, मैं HDF.. बैंक से पूजा बात कर रही हूं। क्या मैं आपका कीमती समय ले सकती हूँ?

सर, आपका एटीएम कॉर्ड ब्‍लॉक हो गया है, आप उसे फिर से शुरू करना चाहेंगे सर? फोन के उस पार से आने वाली पूजा, रोशनी, जसप्रीत, रिचा या राजेश की ऐसी ही सुरीली और अदब भरी आवाजें बहुत लोगों के एकांउट से हजार से लेकर लाखों तक का डाका डाल चुकी हैं।

आपके एटीएम कॉर्ड का क्लोन बनाकर, आपसे ही बातें बनाकर एटीएम कार्ड की डिटेल लेकर या इंटरनेट बैंकिंग को हैक करके होने वाले फ्रॉड अब वैसे ही पब्लिक डोमेन में हैं जैसे कि यह जानना कि कश्मीर में अब कोई भी प्लाट ले सकता है।

नेटफ्लिक्स की वेब सीरिज 'जमताराः सबका नंबर आएगा' इस विषय पर बनी अपनी तरह की पहली फिल्म है। यह फिल्म अपने शुरुआती ऐपीसोड में कई चौंकाने वाली जानकारियां देती है। पहली तो यही कि बैंक से जुड़ी इस तरह की होने वाली कुल फोन कॉल की 95 फीसदी कॉलें अकेले जमतारा से होती हैं। जमतारा, झारखंड का ए‌क पिछड़ा और नक्सल प्रभावित जिला है। फिल्म बताती है कि फर्जी फोन कॉल करने वाले यह लड़के ज्यादातर अनपढ़ या साक्षर भर हैं। वह उम्र में भी बस अभी-अभी बालिग हुए हैं। उसमें से कुछ लड़की की आवाज में बात कर लेते हैं तो कुछ के पास ऐसी लड़कियां हैं जो पैसे के बदले ये काम करती हैं।

ये बात दबी छिपी रहे इसलिए ये लड़के पश्चिम बंगाल बेस्ड की ऐसी लड़कियों से लाखों रुपए देकर शादी कर रहे हैं जो उम्र में उनसे बड़ी हैं साथ ही अंग्रेजी मिश्रित सोफेस्टीकेटेड हिंदी बोल लेती हैं। जरुरत पड़ने पर पूरी की पूरी एक लाइन अंग्रेजी की भी। ऐसा काम करने वाले किसी लड़के के पास अपना बैंक एकांउट नहीं है। फ्रॉड से आया हुआ यह पैसा वह हर किसी के पास उपलब्‍ध जनधन एकाउंट में ट्रांसफर करते हैं, फिर कुछ हजार देकर उसी रोज उनसे लाखों निकलवा लेते हैं। यह एक किस्म की डील है। बैंक जानते हैं कि इसमें कहीं ना कहीं फ्रॉड है, लेकिन वह चुप इसलिए रहते हैं क्योंकि ऐसा उनके धंधे को मुनाफा ही दे रहा है।

ऐसा नहीं है कि पुलिस इन सब चीजों से वाकिफ नहीं है। देश भर की पुलिस अपनी शिकायतें लेकर जमतारा पहुंच रही है। पुलिस संदेह वाले लड़कों को गिरफ्तार भी कर ले रही है लेकिन उन्हें सजा दिलाने के लिए उनके पास वो सबूत नहीं होते हैं जहां ये मुजरिम कोर्ट की नजर में भी मुजरिम साबित हो सकें। इस पूरे नेक्सस में वहां के नेता भी शामिल हैं। वह इस असंगठित काम को संगठित करना चाहते हैं। पुलिस उनके लड़कों को यूं ही ना उठाए इसलिए वह उनको प्रोटेक्‍शन भी दे रहे हैं, बदले में वह पूरी कमाई का चालीस से पचास फीसदी का शेयर अपने पास रख रहे हैं। छोटे से उस गांव में देखते ही देखते कई बड़ी बड़ी कोठियां बन गईं। ब्लैक पैसे को व्हाइट करने के लिए दुकानें भी।

10 एपीसोड वाली वेब सीरिज जमतारा की खूबी ये है कि वह हमें फोन से होने वाले बैकिंग फ्रॉड के बारे में दिलचस्‍प जानकारी बिना बोर किए हुए देती है। सूचनाएं निबंध की शैली में ना रहे इसके लिए वह कई काल्पनिक कथाएं रचती है। जिनमें प्यार की भी एक कहानी है। यहां टुकड़ों-टुकडो़ में जाति की भी बाते आती हैं और संकेतों में राजनीति की भी। फिल्म पात्रों की डिटेलिंग भी करती है। हमें यह पता चलता है कि इस काम में उलझे हुए लड़के बाई डिफॉट अपराधी नहीं हैं लेकिन उनके पास अथाह पैसा इतनी जल्दी आ रहा है कि वह इससे अलग हो ही नहीं सकते। अब वह इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। आईपीसी की मौजूदा धाराएं उनको धर दबोचने के लिए नाकाफी हैं।

जमतारा के साथ समस्या यह है कि जैसे ही इसके पास हमें देने के लिए सूचनाएं चुक जाती हैं यह एक बीग्रेड थ्रिलर फिल्म जैसी लगने लगती है। अपराधियों के साथ लोकल पुलिस का नेक्सस, दैनिक जिंदाबाद, टाइम्स ऑफ सवेरा, अमर क्रांति जैसे सड़कछाप अखबार, उनके रिपोर्टर और जिंदा रहने के लिए उनका किसी दबंग नेता का परिजीवी बन जाना जैसी बातें हम सब पहले भी किसी ना किसी तरह से देख चुके हैं। जमतारा देखी हुई इन चीजों को आगे नहीं ले जा पाती। बल्कि कई दृश्यों में वह उसी तरह की बातों को दोहरा देती है।

नई महिला एसपी के आने के बाद पुरूष प्रधान पुलिस वर्ग में पुलिस कर्मियों की प्रतिक्रिया, उसके काम में आने वाले अवरोध और उस छुटभैय्या नेता को खत्म कर देने का एसपी का संकल्प जैसे प्लाट बचकाने स्तर पर हैं। यह फिल्म तब बेहद सामान्य बन जाती है जब उसका क्लाइमेक्स रचा जा रहा होता है। क्लाइमेक्स में यह फिल्म किसी भी सस्ते सीरियल का महाएपीसोड जैसी लगती है। जिस ग्रिप के साथ जमतारा शुरू होती है क्लाइमेक्स आते-आते वह चीजें हवा हो जाती हैं, यह जमतारा एकलौती लेकिन बड़ी कमी है।

जमतारा में पहचाना हुआ चेहरा सिर्फ अमित सियाल का है। अमित को हम अमेजॉन प्राइम के शो इनसाइड ऐज में सट्टेबाजी करने वाले देवेन्दर मिश्रा से पहचानते हैं। इसके अलावा अमित छोटे से रोल में मिर्जापुर, रेड, सोन चिरय्या, तितली जैसी फिल्मों में भी दिखे थे। अमित के अलावा बाकी टीम लगभग नई है। हमने उन्हें कहीं और एक्टिंग करते नहीं देखा होगा। ज्यादातर का अभिनय अच्छा है। झारखंड के गांव में इतनी साफ सुथरी हिंदी नहीं बोली जाती होगी। तो किरदारों ने टंग पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की। हां, ताजे चलन के अनुसार जरुरत से ज्यादा और नई-नई गालियां आपको यहां सुनने को मिल सकती हैं। जमतारा अपने विषय के लिए एक बार देखी जा सकती है...

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